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श. ३६ : श. ९-१२ : सू. १२,१३
( नवां - बारहवां शतक)
१२. जिस प्रकार भवसिद्धिक- कृतयुग्म कृतयुग्म द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में चार शतक बतलाये गये हैं (भ. ३५।६६), उसी प्रकार अभवसिद्धिक- कृतयुग्म कृतयुग्म द्व - द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में भी चार शतक बतलाने चाहिए, केवल इतना अन्तर है - इन सभी ( अभव्य ) जीवों में सम्यकत्व एवं ज्ञान नहीं है, शेष उसी प्रकार समझना चाहिए। इसी प्रकार ये बारह शतक द्वीन्द्रिय- महायुग्मों के विषय में होते हैं । १३. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है।
भगवती सूत्र
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