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भगवती सूत्र
श. १२ : उ. ६ : सू. १२३,१२४
कृष्ण-राहु-विमान का वर्ण खजन के समान आभा वाला प्रज्ञप्त है, नील-राहु-विमान का वर्ण अलाबुक (तुम्बी) के समान आभा वाला प्रज्ञप्त है, रक्त-राहु-विमान का वर्ण मंजिष्ठ के समान आभा वाला प्रज्ञप्त है, पीत-राहु-विमान का वर्ण हरिद्रा के समान आभा वाला प्रज्ञप्त है, शुक्ल (श्वेत)-राहु-विमान का वर्ण शंख के ढेर के समान आभा वाला प्रज्ञप्त है। जब राहु आता हुआ, जाता हुआ विक्रिया करता हुआ अथवा परिचारणा करता हुआ चन्द्र-लेश्या को पूर्व की ओर से आवृत कर पश्चिम की ओर जाता है, तब पूर्व में चन्द्रमा दिखाई देता है और पश्चिम में राहु । जब राहु आता हुआ, जाता हुआ, विक्रिया करता हुआ अथवा परिचारणा करता हुआ चन्द्र-लेश्या को पश्चिम की ओर से आवृत कर पूर्व की ओर जाता है, तब पश्चिम में चन्द्रमा दिखाई देता है और पूर्व में राहु। इस प्रकार जैसे पूर्व और पश्चिम के दो आलापक कहे गए हैं, इसी प्रकार दक्षिण व उत्तर के भी दो आलापक वक्तव्य हैं। इसी प्रकार उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम के भी दो आलापक वक्तव्य हैं। इसी प्रकार दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम के दो आलापक वक्तव्य हैं। इसी प्रकार पूर्ववत् यावत् तब उत्तर-पश्चिम में चन्द्रमा दिखाई देता है और दक्षिण-पूर्व में राहु। जब राहु आता हुआ, जाता हुआ, विक्रिया करता हुआ अथवा परिचारणा करता हुआ चन्द्र-लेश्या को आवृत करता हुआ, आवृत करता हुआ स्थित होता है तब मनुष्य-लोक में मनुष्य कहते हैं इस प्रकार निश्चित ही राहु चन्द्रमा का ग्रहण करता है, राहु चंद्रमा का ग्रहण करता
जब राहु आता हुआ, जाता हुआ, विक्रिया करता हुआ अथवा परिचारणा करता हुआ चन्द्र-लेश्या को आवृत कर पार्श्व से जाता है, तब मनुष्य-लोक में मनुष्य कहते हैं-चन्द्रमा के द्वारा राहु की कुक्षि का भेदन हुआ है, चन्द्रमा के द्वारा राहु की कुक्षि का भेदन हुआ है। जब राहु आता हुआ, जाता हुआ, विक्रिया करता हुआ अथवा परिचारणा करता हुआ चन्द्र-लेश्या को आवृत कर पीछे हटता है, दूर जाता है तब मनुष्य-लोक में मनुष्य कहते हैं- राहु के द्वारा चन्द्रमा को छोड़ दिया गया है, राहु के द्वारा चन्द्रमा को छोड़ दिया गया है। जब राहु आता हुआ, जाता हुआ, विक्रिया करता हुआ अथवा परिचारणा करता हुआ चन्द्र-लेश्या को आवृत कर नीचे सपक्ष, सप्रतिदिशि-समान दिशा और विदिशा को आवृत कर स्थित होता है, तब मनुष्य-लोक में मनुष्य कहते हैं-राहु के द्वारा चन्द्रमा का ग्रहण कर लिया
गया है, राहु के द्वारा चंद्रमा का ग्रहण कर लिया गया है। १२४. भंते ! राहु कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम ! राहु दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-ध्रुव राहु और पर्व राहु। जो ध्रुव राहु है, वह कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से प्रतिदिन चंद्रमा की लेश्या (मंडल) का पन्द्रहवां भाग आवृत करता हुआ, आवृत करता हुआ स्थित होता है, जैसेप्रतिपदा के दिन पहला भाग, द्वितीया के दिन दूसरा भाग यावत् पन्द्रहवें दिन (अमावस्या) पन्द्रहवां भाग (सम्पूर्ण-चन्द्रमंडल)। अंतिम समय (कृष्णपक्ष के अंतिम दिन) में चन्द्रमा रक्त
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