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श. ३४ : उ. १,२ : सू. ३९-४३
भगवती सूत्र कर्म की अपेक्षा से अधिकतर कर्म बन्ध करते हैं)? वेमात्र-स्थिति वाले (अर्थात् परस्पर की अपेक्षा से विषम मात्रा में स्थिति वाले) एकेन्द्रिय-जीव क्या वेमात्र-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं (अर्थात् परस्पर की अपेक्षा से विषम परिमाण में कर्म-बन्ध वाले हैं और
की अपेक्षा से अधिकतर कर्म बन्ध करते हैं)? गौतम! कुछेक तुल्य-स्थिति वाले एकेन्द्रिय-जीव तुल्य-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं, कुछेक तुल्य-स्थिति वाले एकेन्द्रिय-जीव वेमात्र-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं, कुछेक वेमात्र-स्थिति वाले एकेन्द्रिय-जीव तुल्य-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं, कुछेक वेमात्र-स्थिति वाले एकेन्द्रिय-जीव वेमात्र-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। ४०. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कुछेक तुल्य-स्थिति वाले एकेन्द्रिय-जीव यावत् 'वेमात्र-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं' तक? गौतम! एकेन्द्रिय-जीव चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-कुछ एकेन्द्रिय-जीव समान आयु वाले
और एक साथ उपपन्न हैं, कुछ एकेन्द्रिय-जीव समान आयुवाले और भिन्न काल में उपपन्न हैं, कुछ एकेन्द्रिय-जीव विषम आयु वाले और एक साथ उपपन्न हैं, कुछ एकेन्द्रिय-जीव विषम आयु वाले और भिन्न काल में उपपन्न हैं। इनमें जो एकेन्द्रिय-जीव समान आयु वाले
और एक साथ उपपन्न हैं वे तुल्य-स्थिति वाले और तुल्य-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। इनमें जो एकेन्द्रिय-जीव समान आयु वाले और भिन्न काल में उपपन्न हैं वे तुल्य-स्थिति वाले और वेमात्र-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। इनमें जो एकेन्द्रिय-जीव विषम आयु वाले और एक साथ उपपन्न हैं वे वेमात्र-स्थिति वाले और तुल्य-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। इनमें जो एकेन्द्रिय-जीव विषम आयु वाले और भिन्न काल में उपपन्न हैं वे वेमात्र-स्थिति वाले और वेमात्र-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। गौतम ! यह इस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् (वेमात्र-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं) तक वक्तव्य हैं। (भ. ३४।३९) ४१. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं।
दूसरा उद्देशक ४२. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न(प्रथम समय के)-एकेन्द्रिय-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! अनन्तर-उपपन्न(प्रथम समय के)-एकेन्द्रिय-जीव पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे—पृथ्वीकायिक, (अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक)। प्रत्येक के दो भेद जैसे एकेन्द्रिय-शतक में बतलाये हैं यावत् बादर-वनस्पतिकायिक' तक समझने चाहिए। (अनन्तर-उपपन्न-एकेन्द्रिय-जीव केवल अपर्याप्तक ही होते हैं, अतः पर्याप्तक के भेद यहां नहीं होंगे) ४३. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न(प्रथम समय के)-बादर-पृथ्वीकायिक-जीवों के स्थान कहां प्रज्ञप्त
हैं?
गौतम! अपने स्थान की अपेक्षा से आठ पृथ्वियों में (अनन्तर-उपपन्न-बादर-पृथ्वीकायिक के
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