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भगवती सूत्र
श.३३ : श. ३-६ :: सू. ४५-५३ ४५. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (चौथा शतक) ४६. इसी प्रकार कापोत-लेश्या वाले (एकेन्द्रिय)-जीवों के साथ भी (चौथा) शतक बतलाना
चाहिए, केवल इतना अन्तर है-('नील-लेश्या वाले' के स्थान पर) 'कापोत-लेश्या वाले' ऐसा अभिलाप बतलाना चाहिए।
पांचवां शतक भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीवों के कर्म-प्रकृति-पद ४७. भन्ते! भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीव पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, भवसिद्धिक-पृथ्वीकायिक के चार भेद यावत् भवसिद्धिक-वनस्पतिकायिक' तक वक्तव्य है। ४८. भन्ते! भवसिद्धिक-अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीवों के कितनी कर्म-प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं? इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जैसा प्रथम-एकेन्द्रिय-शतक बतलाया गया है वैसा ही भवसिद्धिक-शतक भी वक्तव्य है। उद्देशकों की परिपाटी वैसे ही ज्ञातव्य है यावत् 'अचरम' तक। ४९. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
छट्ठा शतक ५०. भन्ते! कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीव पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं,
जैसे-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। ५१. भन्ते! कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-पृथ्वीकायिक-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-पृथ्वीकायिक-जीव दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं,
जैसे सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक और बादर-पृथ्वीकायिक। ५२. भन्ते! कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त
गौतम! कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे पर्याप्त और अपर्याप्त। इसी प्रकार कृष्ण-लेश्या वाले भव-सिद्धिक-बादर-पृथ्वीकायिक-जीव के भी दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं। इस अभिलाप के द्वारा वैसे ही चार भेद वक्तव्य हैं। ५३. भन्ते! कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीवों के कितनी
कर्म-प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं? इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जैसे औधिक (समुच्चय)-उद्देशक में बतलाया गया है वैसे ही यावत् 'वेदन करते हैं' तक समझना चाहिए।
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