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भगवती सूत्र
श. १२ : उ. ४ : सू. ८७-९२ अनंत। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों में परिवर्त्त की वक्तव्यता। इसी प्रकार वैक्रिय-पुद्गल-परिवर्त की भी वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् आनापान-पुद्गल-परिवर्त्त की वैमानिकों में वक्तव्यता। यह परिवर्त पृथक्-पृथक् अनेक जीवों की अपेक्षा चौबीस दंडकों में ही होता है। ८८. भंते ! प्रत्येक नैरयिक के नैरयिक के रूप में अतीत में कितने औदारिक-पुद्गल-परिवर्त हुए हैं ? एक भी नहीं। भविष्य में कितने होंगे?
एक भी नहीं। ८९. भंते ! एक-एक नैरयिक के असुरकुमार के रूप में अतीत में कितने औदारिक-पुद्गल-परिवर्त्त हुए हैं ?
पूर्ववत्। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार के रूप में। ९०. भंते ! एक-एक नैरयिक के पृथ्वीकायिक के रूप में अतीत में कितने औदारिक-पुद्गल-परिवर्त्त हुए हैं ? अनंत। भविष्य में कितने होंगे ? किसी के होंगे, किसी के नहीं होंगे। जिसके होंगे, उसके जघन्यतः एक, दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय,असंख्येय अथवा अनंत। इसी प्रकार यावत् मनुष्य के रूप में। वाणमंतर, ज्योतिष्क, और वैमानिक के रूप में असुरकुमार की भांति वक्तव्यता। ९१. भंते ! प्रत्येक असुरकुमार के नैरयिक के रूप में अतीत में कितने औदारिक-पुद्गल
-परिवर्त्त हुए हैं? इसी प्रकार जैसे नैरयिक की वक्तव्यता, वैसे ही असुरकुमार की वक्तव्यता यावत् वैमानिक के रूप में। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक की भी वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् वैमानिक की भी वक्तव्यता।
सबका एक ही गमक-समान वक्तव्यता है। ९२. भंते ! प्रत्येक नैरयिक के नैरयिक के रूप में अतीत में कितने वैक्रिय-पुद्गल-परिवर्त्त हुए
अनंत। भविष्य में कितने होंगे? एकोत्तरिक-किसी के होंगे, किसी के नहीं होंगे। जिसके होंगे उसके जघन्यतः एक, दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय, असंख्येय अथवा अनंत। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार के रूप में।
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