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छब्बीसवां शतक पहला उद्देश
श्रुतदेवता भगवती को नमस्कार
संग्रहणी गाथा
१. जीव २. लेश्या ३. पाक्षिक ४. दृष्टि ५. अज्ञान ६. ज्ञान ७. संज्ञा ८. वेद ९. कषाय १०. उपयोग ११. योग-कर्म-बन्ध के ये ग्यारह स्थान हैं।
जीवों और लेश्यादि से विशेषित-जीवों का बन्धाबन्ध- पद
१. उस काल और उस समय में राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा – (भ. १ / १०) भन्ते ! क्या जीवों ने पाप कर्म का बन्ध किया था ? कर रहा है? करेगा ? जीवों ने क्या पाप-कर्म का बन्ध किया था, कर रहा है, नहीं करेगा? जीवों ने क्या पाप कर्म का बन्ध किया था, नहीं कर रहा है, करेगा ? जीवों ने क्या पाप कर्म का बन्ध किया था, नहीं कर रहा है, नहीं करेगा ?
गौतम! किसी जीव ने पाप कर्म का बन्ध किया था, कर रहा है, करेगा। किसी जीव ने पाप- कर्म का बन्ध किया था, कर रहा है, नहीं करेगा। किसी जीव ने पाप कर्म का बन्ध किया था, नहीं कर रहा है, करेगा। किसी जीव ने पाप कर्म का बन्ध किया था, नहीं कर रहा है, नहीं करेगा।
२. भन्ते ! क्या लेश्या युक्त-जीव ने पाप कर्म का बन्ध किया था, कर रहा है, करेगा ? लेश्या - युक्त जीव ने पाप कर्म का बन्ध किया था, कर रहा है, नहीं करेगा - पृच्छा । (भ. २६/१)
गौतम ! लेश्या -युक्त किसी जीव ने पाप कर्म का बन्ध किया था, कर रहा है, करेगा। इसी प्रकार चार भंग वक्तव्य हैं।
३. भन्ते ! क्या कृष्ण-लेश्या युक्त जीव ने पाप कर्म का बन्ध किया था...? पृच्छा । (भ. २६/१)
गौतम ! कृष्ण - लेश्या -युक्त किसी जीव ने पाप कर्म का बन्ध किया था, कर रहा है, करेगा । कृष्ण - लेश्या - युक्त किसी जीव ने पाप कर्म का बन्ध किया था, कर रहा है, नहीं करेगा। इसी प्रकार यावत् पद्म-लेश्या युक्त- जीव की वक्तव्यता । सर्वत्र प्रथम और द्वितीय भंग वक्तव्य है। शुक्ल - लेश्या - युक्त जीव की लेश्या युक्त- जीव के चार भंग (भ. २६ / २) की भांति
वक्तव्यता ।
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