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श. २५ : उ. ६ : सू. ३४८-३५३
भगवती सूत्र
३४८. भन्ते! इन पुलाक, बकुश, प्रतिषेवणा (कुशील), कषायकुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक के संयम-स्थानों में कौन-किनसे अल्प? बहुत? तुल्य? या विशेषाधिक हैं? गौतम! इन (छह प्रकार के निर्ग्रन्थों के संयम-स्थानों में) निर्ग्रन्थ और स्नातक का अजघन्य
और अनुत्कृष्ट अर्थात् केवल एक संयम-स्थान सबसे अल्प है। पुलाक के संयम-स्थान इससे असंख्येय-गुणा हैं। बकुश के संयम-स्थान इनसे असंख्येय-गुणा हैं। प्रतिसेवणा-कुशील के संयम-स्थान इनसे असंख्येय-गुणा हैं। कषायकुशील-निर्ग्रन्थ के संयम-स्थान इनसे
असंख्येय-गुणा हैं। निकर्ष-पद ३४९. भन्ते! पुलाक के कितने चरित्र-पर्यव प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! अनन्त चरित्र-पर्यव प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार यावत् स्नातक की वक्तव्यता। ३५०. एक पुलाक भिक्षु सजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा दूसरे पुलाक भिक्षु के चरित्र-पर्यवों से क्या हीन है? तुल्य है? अभ्यधिक है? गौतम! स्यात् हीन है, स्यात् तुल्य है, स्यात् अभ्यधिक है। यदि वह हीन होता है, तो उससे अनन्त-भाग-हीन होता है अथवा असंख्येय-भाग-हीन होता है अथवा संख्येय-भाग-हीन होता है अथवा संख्येय-गुणा-हीन होता है अथवा असंख्येय-गुणा-हीन होता है अथवा अनन्त-गुणा-हीन होता है। यदि वह अभ्यधिक होता है, तो उससे अनन्त-भाग-अभ्यधिक होता है अथवा असंख्येय-भाग-अभ्यधिक होता है अथवा संख्येय-भाग-अभ्यधिक होता है अथवा संख्येय-गुणा-अभ्यधिक होता है अथवा असंख्येय-गुणा-अभ्यधिक होता है अथवा अनन्त-गुणा-अभ्यधिक होता है। ३५१. भन्ते! एक पुलाक विजातीय स्थान वाले अन्य बकुश के सन्निकर्ष अर्थात् संयोजन से
चारित्र-पर्यवों की दृष्टि से क्या हीन है? तुल्य है? अभ्यधिक है? गौतम! हीन है, तुल्य नहीं है, अभ्यधिक नहीं है। वह उसका अनन्त-गुणा-हीन है। इसी प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील की वक्तव्यता। जैसे पुलाक की पुलाक की अपेक्षा स्वस्थान में षट्स्थान-पतित की वक्तव्यता है (भ. २५/३५०), वैसे ही पुलाक की कषायकुशील के साथ षट्स्थान-पतित की वक्तव्यता है। निर्ग्रन्थ की बकुश की भांति वक्तव्यता (भ. २५/२५१)। इसी प्रकार स्नातक की भी वक्तव्यता। ३५२. भन्ते! एक बकुश भिक्षु विजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा पुलाक भिक्षु
के चरित्र-पर्यवों से क्या हीन है? तुल्य है? अभ्यधिक है? गौतम! हीन नहीं है, तुल्य नहीं है, अभ्यधिक है-अनन्त-गुणा-अभ्यधिक है। ३५३. भन्ते! एक बकुश भिक्षु सजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा दूसरे बकुश के
चारित्र-पर्यवों से पृच्छा-क्या हीन है? तुल्य है? अभ्यधिक है?) गौतम! स्यात् हीन है, स्यात् तुल्य है, स्यात् अभ्यधिक है। यदि वह हीन होता है, तो उससे षट्स्थान-पतित है (भ. २५/३५०)। (यदि वह अभ्यधिक है तो उसी प्रकार षट्स्थान-पतित होता है (भ. २५/३५०)।
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