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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ६ : सू. २९१-३०२ गौतम! उपशान्त-वेदक होता है अथवा क्षीण-वेदक होता है। २९२. सवेदक होता है तो क्या स्त्री-वेदक होता है?.....पृच्छा।
गौतम! बकुश-निर्ग्रन्थ की भांति तीनों ही वेद होते हैं (भ. २५/२८९)। २९३. भन्ते! क्या निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थ सवेदक होता है?....पृच्छा।
गौतम! सवेदक नहीं होता, अवेदक होता है। २९४. यदि होता है तो क्या उपशान्त-वेदक होता है?.....पृच्छा।
गौतम! उपशान्त-वेदक होता है अथवा क्षीण-वेदक होता है। २९५. भन्ते! क्या स्नातक-निर्ग्रन्थ सवेदक होता है? जैसे निर्ग्रन्थ की वैसे स्नातक की भी
वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-स्नातक उपशान्त-वेदक नहीं होता, क्षीण-वेदक होता है। राग-पद २९६. भन्ते! क्या पुलाक सराग होता है? वीतराग होता है?
गौतम! सराग होता है, वीतराग नहीं होता। इसी प्रकार यावत् कषाय-कुशील की वक्तव्यता। २९७. भन्ते! क्या निर्ग्रन्थ सराग होता है?............पृच्छा।
गौतम! सराग नहीं होता, वीतराग होता है। २९८. यदि वीतराग होता है तो क्या उपशान्त-कषाय-वीतराग होता है? क्षीण-कषाय-वीतराग होता है? गौतम! उपशान्त-कषाय-वीतराग होता है अथवा क्षीण-कषाय-वतीराग होता है। इसी प्रकार स्नातक की भी वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-स्नातक उपशान्त-कषाय-वीतराग नहीं होता, क्षीण-कषाय-वीतराग होता है। कल्प-पद २९९. भन्ते! क्या पुलाक-निर्ग्रन्थ स्थित-कल्प होता है? अस्थित-कल्प होता है?
गौतम! स्थित-कल्प भी होता है अथवा अस्थित-कल्प भी होता है। इसी प्रकार यावत् स्नातक की वक्तव्यता। ३००. भन्ते! क्या पुलाक-निर्ग्रन्थ जिन-कल्प होता है? स्थविर-कल्प होता है? कल्पातीत होता है? गौतम! जिन-कल्प नहीं होता, स्थविर-कल्प होता है, कल्पातीत नहीं होता। ३०१. बकुश................? पृच्छा (भ. २५/३००)। गौतम! जिन-कल्प होता है अथवा स्थविर-कल्प होता है, कल्पातीत नहीं होता। इसी प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील की भी वक्तव्यता। ३०२. कषाय-कुशील .................? पृच्छा (भ. २५/३००)। गौतम! जिन-कल्प होता है अथवा स्थविर-कल्प होता है अथवा कल्पातीत होता है।
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