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श. २५ : उ. ३ : सू. ४६-५१
भगवती सूत्र ४६. भन्ते! (जहां एक परिमण्डल-संस्थान यवमध्य परिमाण वाला है, वहां क्या) वृत्त-संस्थान संख्येय हैं? .....उसी प्रकार पृच्छा। इसी प्रकार यावत् आयत-संस्थान। ४७. भन्ते! जहां एक वृत्त-संस्थान यवमध्य परिमाण वाला है, वहां परिमण्डल-संस्थान संख्येय हैं.....? उसी प्रकार पृच्छा।......वृत्त-संस्थान भी इसी प्रकार। इसी प्रकार यावत् आयत-संस्थान । इसी प्रकार एक-एक संस्थान के साथ पांचों संस्थानों की चारणा करणीय है यावत् आयत-संस्थान। ४८. भन्ते! जहां इस रत्नप्रभा-पृथ्वी में एक परिमण्डल-संस्थान यवमध्य परिमाण वाला है
वहां परिमण्डल-संस्थान क्या संख्येय है....पृच्छा। गौतम! संख्येय नहीं हैं, असंख्येय नहीं हैं, अनन्त हैं? ४९. भन्ते! (जहां इस रत्नप्रभा-पृथ्वी.....वहां) वृत्त-संस्थान क्या संख्येय हैं.....? उसी
प्रकार पृच्छा। इसी प्रकार यावत् आयत-संस्थान। ५०. भन्ते! जहां इस रत्नप्रभा-पृथ्वी पर एक वृत्त-संस्थान यवमध्य परिमाण वाला है वहां परिमण्डल-संस्थान क्या संख्येय हैं....? पृच्छा। गौतम! संख्येय नहीं है, असंख्येय नहीं हैं, अनन्त हैं। इसी प्रकार वृत्त-संस्थान अनंत हैं। इसी प्रकार यावत् आयत-संस्थान। इसी प्रकार पुनरपि एक-एक संस्थान के साथ पांचों संस्थानों की चारणा करणीय है, जैसे अधस्तन संस्थान यावत् आयत-संस्थान के साथ। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमी। इसी प्रकार कल्पों में भी यावत् ईषत्-प्राग्भारा-पृथ्वी। प्रदेशावगाह की अपेक्षा संस्थान-निरूपण का पद ५१. भन्ते! वृत्त-संस्थान कितने प्रदेश वाला, कितने प्रदेश का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त
है?
गौतम! वृत्त-संस्थान दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-घन-वृत्त और प्रतर-वृत्त । उसमें जो प्रतर-वृत्त है वह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-ओजस्-प्रदेशिक (विषम संख्या वाले प्रदेशों से निष्पन्न स्कन्ध) और युग्म-प्रदेशिक (सम संख्या वाले प्रदेशों से निष्पन्न स्कन्ध)। जो ओजस्-प्रदेशिक है वह जघन्यतः पांच-प्रदेशी (पांच परमाणुओं से निष्पन्न पुद्गल-स्कन्ध) है और पांच आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, उत्कृष्टतः अनन्त-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) है और असंख्येय-आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है। जो युग्म-प्रदेशिक है वह जघन्यतः बारह-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) है और बारह आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, उत्कृष्टतः अनन्त-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) है और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है। जो घन-वृत्त है वह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-ओजस्-प्रदेशिक और युग्म-प्रदेशिक। जो ओजस्-प्रदेशिक है वह जघन्यतः सात-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) है और सात आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला तथा उत्कृष्टतः अनन्त-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) है और असंख्येय
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