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श. २५ : उ. १ : सू. ३-६
भगवती सूत्र
८. सूक्ष्म-पर्याप्तक-जीवा का जघन्य योग उससे असंख्येय गुणा है। ९. बादर-पर्याप्तक-जीवों का जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा है। १०. सूक्ष्म-पर्याप्तक-जीवों का उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा है। ११. बादर-अपर्याप्तक-जीवों का उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा है। १२. सूक्ष्म-पर्याप्तक-जीवों का उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा है। १३. बादर-पर्याप्तक-जीवों का उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा है। १४. द्वीन्द्रिय-पर्याप्तक-जीवों का जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा है। १५. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय- (पर्याप्तक-जीवों का जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा है) इसी प्रकार यावत् १८. संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तक-जीवों का जघन्य योग उससे असंख्येय-गुणा है। १९. द्वीन्द्रिय-अपार्याप्तक-जीवों का उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा है। २०. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय-(अपर्याप्तक-जीवों का भी उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा है) इसी प्रकार यावत् २३. संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-अपर्याप्तक-जीवों का उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा है। २४. द्वीन्द्रिय-पर्याप्तक-जीवों का उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा है। २५. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय-पर्याप्तक-जीवों का उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा है) इसी प्रकार यावत् २८. संज्ञी-पंचेन्द्रिय-पर्याप्तक-जीवों का उत्कृष्ट योग उससे असंख्येय-गुणा है। समयोगी-विषमयोगी-पद ४. भन्ते! क्या प्रथम समय में उपपन्न दो नैरयिक सम-योग वाले हैं? विषम-योग वाले हैं?
गौतम! किसी अपेक्षा सम-योग वाले हैं, किसी अपेक्षा विषम-योग वाले हैं। ५. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-किसी अपेक्षा सम-योग वाले हैं और किसी
अपेक्षा विषम-योग वाले हैं? गौतम! आहारक-नैरयिक की अपेक्षा अनाहारक-नैरयिक अथवा अनाहारक-नैरयिक की अपेक्षा आहारक-नैरयिक स्यात् हीन, स्यात् तुल्य और स्यात् अभ्यधिक योग वाला होता है। आहारक से अनाहारक-यह हीनता का हेतु है। अनाहारक से आहारक-यह अधिकता का हेतु है। दोनों आहारक अथवा दोनों अनाहारक-यह तुल्यता का हेतु है। यदि हीन योग वाला होता है तो असंख्येय-भाग-हीन योग वाला अथवा संख्येय-भाग-हीन योग वाला होता है, संख्येय-गुणा-हीन योग वाला अथवा असंख्येय-गुणा-हीन योग वाला होता है। यदि अधिक योग वाला होता है तो असंख्येय-भाग-अधिक योग वाला अथवा संख्येय-भाग-अधिक योग वाला अथवा संख्येय-भाग-अधिक योग, संख्येय-गुणा-अधिक योग वाला अथवा असंख्येय-गुणा-अधिक योग वाला होता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-किसी अपेक्षा सम-योग वाले हैं और किसी
अपेक्षा विषम-योग वाले हैं। इस प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता। योग-पद ६. भन्ते! योग कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! योग पन्द्रह प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. सत्य-मनो-योग २. मृषा-मनो-योग ३.
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