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श. २४ : उ. २४ : सू. ३५१-३५५
भगवती सूत्र २४/१०५-१०८) भांति नौ ही गमक वक्तव्य हैं, केवल इतना विशेष है-सनत्कुमार-देव
की स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। सत्तासीवां आलापक : चौथे देवलोक से आठवें देवलोक तक संज्ञी-तिर्यञ्च-पञ्चेन्द्रिय
-जीवों और संज्ञी-मनुष्यों का उपपात-आदि ३५२. भन्ते! माहेन्द्रक-देव कहां से उपपन्न होते हैं? जिस प्रकार सनत्कुमार-देवों (भ. २४/ ३४९-३५१) की वक्तव्यता वैसी ही माहेन्द्रक-देवों की वक्तव्यता। केवल इतना विशेष है-(स्थिति)-माहेन्द्रक-देवों की स्थिति पूर्वोक्त से सातिरेक वक्तव्य है। इसी प्रकार ब्रह्मलोक (पांचवें देवलोक) के देवों की भी वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-ब्रह्मलोक-देव की स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। इसी प्रकार यावत् सहस्रार (आठवें देवलोक) तक, केवल इतना विशेष है-स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। जघन्य काल की स्थिति वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों लांतक-आदि-देवों में उत्पन्न होते हैं, उनके तीनों ही गमकों (चौथे, पांचवें और छट्टे) में छहों ही लेश्याएं वक्तव्य हैं। संहनन-ब्रह्मलोक- और लांतक-देवलोक में (पांचवें और छठे देवलोक में) उपपद्यमान तिर्यग्योनिकों और मनुष्यों में संहनन प्रथम पांच, महाशुक्र- और सहस्रार-देवलोक में (सातवें
और आठवें देवलोक में) उपपद्यमान तिर्यग्योनिकों और मनुष्यों में संहनन प्रथम चार। शेष पूर्ववत्। अट्ठासीवां आलापक : आनत-देवों (नौवें देवलोक) में संज्ञी-मनुष्यों का उपपात-आदि ३५३. भन्ते! आनत-देव कहां से उपपन्न होते हैं......? उपपात–जैसा सहस्रार-देवों की
भांति वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-तिर्यगयोनिक-जीवों की उपपत्ति नहीं होती यावत्३५४. भन्ते! संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्य, जो आनत-देवलोक में उपपन्न होने योग्य है.....(पृच्छा)-सहस्रार-देवलोक में उपपद्यमान मनुष्यों की भांति वक्तव्यता (भ. २४/३५२) केवल इतना विशेष है-संहनन-उपपन्न होने वाले मनुष्यों में प्रथम तीन । शेष पूर्ववत् यावत् अनुबंध तक। भव की अपेक्षा जघन्यतः तीन भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः सात भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा जघन्यतः दो पृथक्त्व (दो से नौ)-वर्ष-अधिक-अटारह-सागरोपम. उत्कष्टतः चार कोटि-पर्व-अधिक-सत्तावन-सागरोपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। इसी प्रकार शेष आठ गमक भी वक्तव्य हैं, केवल इतना विशेष है-स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार यावत् अच्युत-देवों की वक्तव्यता। केवल इतना विशेष है-स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। आनत आदि चार देवलोक में उपपन्न होने वाले मनुष्यों में संहनन–प्रथम
तीन। नयासीवां आलापक : नव ग्रैवेयक-देवों में संज्ञी-मनुष्यों का उपपात-आदि ३५५. भन्ते! ग्रैवेयक-देव कहां से उपपन्न होते हैं? वही वक्तव्यता (भ. २४/३५४) केवल इतना विशेष है-ग्रैवेयक-देव में उपपन्न होने वाले मनुष्यों में प्रथम दो संहनन होते हैं। स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं।
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