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________________ भगवती सूत्र श. २४ : उ. २१ : सू. २९६-३०० उनसठवां आलापक : मनुष्य में दूसरी नरक से छट्ठी नरक के नैरयिक-जीवों का उपपात-आदि जैसे रत्नप्रभा-(नैरयिक-जीवों की मनुष्य में उत्पत्ति के विषय में वक्तव्यता है वैसी ही वक्तव्यता शर्कराप्रभा के नैरयिक-जीवों के विषय में है, केवल इतना विशेष है-(स्थिति) जघन्यतः पृथक्त्व (दो से नौ)-वर्ष, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व आयुष्य वाले जीव के रूप में उत्पन्न होता है। अवगाहना, लेश्या, ज्ञान, स्थिति, अनुबन्ध और कायसंवेध का नानात्व (भिन्नता) तिर्यग्योनिक-उद्देशक (भ. २४/२४३) की भांति ज्ञातव्य है। इसी प्रकार यावत् तमा-पृथ्वी (छट्ठी नरक) के नैरयिक-जीवों तक के विषय में बतलाना चाहिए। साठवां आलापक : मनुष्य में तिर्यंच का उपपात-आदि २९७. यदि तिर्यग्योनिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं यावत् पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीवों से उत्पन्न होते हैं? गौतम! एकेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों के भेद पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-उद्देशक (भ. २४/ २४५-२४८) की भांति वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-तेजस्कायिक और वायुकायिक-जीवों का निषेध वक्तव्य है। शेष पूर्ववत्। यावत्इकसठवां आलापक : मनुष्यों में पृथ्वीकायिक-जीवों का उपपात-आदि २९८. भन्ते! पृथ्वीकायिक-जीव जो मनुष्य में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है? गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व आयुष्य वाले मनुष्यों में उत्पन्न होगा। २९९. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? इसी प्रकार जैसे पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उपपद्यमान पृथ्वीकायिक-जीवों की वक्तव्यता (भ. २४/२४७), वही उपपद्यमान (पृथ्वीकायिक-जीव के मनुष्य में) नौ ही गमकों में वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-तीसरे, छटे और नौवें गमकों में परिमाण-जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय जीव उत्पन्न होते हैं। जब पृथ्वीकायिक-जीव अपनी जघन्य-काल की स्थिति में उत्पन्न होता है, उस समय प्रथम गमक में अध्यवसान प्रशस्त भी होते हैं, अप्रशस्त भी होते है, द्वितीय गमक में अध्यवसान अप्रशस्त होते हैं, तृतीय गमक में अध्यवसान प्रशस्त होते हैं। शेष पूर्ववत् अविकल रूप से वक्तव्य है। बासठवां आलापक : मनुष्यों में अप्कायिक-जीव आदि नौ स्थानों के जीवों का उपपात-आदि ३००. यदि अप्कायिक-जीव मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं? (पृच्छा) इसी प्रकार अप्कायिक-जीवों की वक्तव्यता। इसी प्रकार वनस्पतिकायिक-जीवों की वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय-जीवों की वक्तव्यता। असंज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक, संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक, असंज्ञी-मनुष्य और संज्ञी-मनुष्य-ये सभी पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-उद्देशक की भांति वक्तव्य है (भ. २४/२४८-२८२), केवल इतना ७६५
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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