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श. २४ : उ. १२ : सू. १८६-१८९
भगवती सूत्र जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-बाईस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः अड़तालीस-वर्ष-अधिक
-अट्ठासी-हजार-वर्ष-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (चौथा, पांचवां और छट्ठा गमक) १८७. वही अपनी जघन्य काल की स्थिति में उत्पन्न द्वीन्द्रिय-जीव पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होता है। उसकी तीनों गमकों (चौथे, पांचवें, छठे) में वही वक्तव्यता, (भ. २४/१८६) केवल इतना विशेष है-ये सात नानात्व (भिन्नत्व) हैं, १. शरीरावगाहना-पृथ्वीकायिक जीवों की भांति वक्तव्य है। २. सम्यग्-दृष्टि नहीं होते, मिथ्या-दृष्टि होते हैं, सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि नहीं होते। ३. नियमतः दो अज्ञान । ४. मन-योगी नहीं होते, वचन-योगी नहीं होते, काय-योगी होते हैं। ५. स्थिति–जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः भी अन्तर्मुहूर्त ६. अध्यवसान अप्रशस्त होते हैं। ७. अनुबन्ध-स्थिति की भांति वक्तव्य है। कायसंवेध-प्रथम दो गमकों की भांति। तीसरे गमक में उसी प्रकार भव की अपेक्षा आठ भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-बाईस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः चार-अन्तर्मुहूर्त-अधिक-अट्ठासी-हजार-वर्ष-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता
(सातवां, आठवां और नवां गमक) १८८. वही अपनी उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न द्वीन्द्रिय-जीव पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। उसके भी तीनों गमक औधिक गमक के समान (सातवां, आठवां और नवमां) वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-तीनों ही गमकों में स्थिति जघन्यतः बारह वर्ष, उत्कृष्टतः भी बारह वर्ष। इसी प्रकार अनुबंध भी। भव की अपेक्षा जघन्यतः दो भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः आठ भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा यथोचित वक्तव्य है। यावत नौवें गमक में जघन्यतः बारह-वर्ष-अधिक-बाईस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः अड़चालीस-वर्ष-अधिक-अट्ठासी-हजार-वर्ष–इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। सत्ताईसवां आलापक : पृथ्वीकायिक-जीवों में तेइन्द्रिय-जीवों का उपपात-आदि १८९. यदि त्रीन्द्रियों से पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं? इसी प्रकार ही नव गमक
वक्तव्य हैं, केवल इतना विशेष है-प्रथम तीन गमकों में शरीरावगाहना-जघन्यतः अंगुल-का-असंख्यातवां-भाग, उत्कृष्टतः तीन गव्यूत। इन्द्रियां तीन। स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः उनपचास-रात्रि-दिवस। तीसरे गमक में काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-बाईस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः एक-सौ-छियानवें-रात्रि-दिवस-अधिक-अट्ठासी-हजार-वर्ष—इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। मध्यम तीन (चौथा, पांचवां और छट्ठा) गमक उसी प्रकार वक्तव्य हैं, अंतिम तीन (सातवां, आठवां
और नवां) गमक भी उसी प्रकार वक्तव्य हैं, केवल इतना विशेष है-स्थिति-जघन्यतः उनपचास-रात्रि-दिवस, उत्कृष्टतः भी उनपचास-रात्रि-दिवस। कायसंवेध यथोचित वक्तव्य
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