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भगवती सूत्र
(सातवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक)
१७४. वही अपनी उत्कृष्ट काल की स्थिति वालों में उत्पन्न पृथ्वीकायिक- जीव उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है, इसी प्रकार तृतीय गमक के सदृश अविकल रूप से वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है उसकी अपनी स्थिति जघन्यतः बाईस हजार- वर्ष, उत्कृष्टतः भी बाईस हजार वर्ष ।
श. २४ : उ. १२ : सू. १७४-१७८
(आठवां गमक : उत्कृष्ट और जघन्य )
१७५. वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वालों में उत्पन्न पृथ्वीकायिक- जीव जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले उत्कृष्टतः भी अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । इसी प्रकार जैसा सप्तम गमक में वक्तव्यता यावत् भवादेश तक । काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त अधिक- बाईस हजार वर्ष, उत्कृष्टतः चार - अन्तर्मुहूर्त्त अधिक- अट्ठासी हजार वर्ष - इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति आगति करता है । (नवां गमक : उत्कृष्ट और उत्कृष्ट )
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१७६. वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वालों में उत्पन्न पृथ्वीकायिक- जीव जघन्यतः बाईस
- हजार वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । वही सप्तम गमक की वक्तव्यता ज्ञातव्य है यावत् भवादेश तक । काल की अपेक्षा जघन्यतः चवालीस हजार वर्ष, उत्कृष्टतः एक लाख - छिहत्तर हजार वर्ष - इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति - आगति करता है।
बाईसवां आलापक : पृथ्वीकाय में अप्काय का उपपात - आदि
१७७. यदि अप्कायिक- एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं तो - क्या सूक्ष्म-अप्कायिकों से उत्पन्न होता है ? बादर - अप्कायिकों से उत्पन्न होता है ? इस प्रकार चार भेद पृथ्वीकायिक जीवों की भांति कथनीय है । १. अपर्याप्त सूक्ष्म- अप्कायिक २. पर्याप्त सूक्ष्म अपकायिक ३. अपर्याप्त - बादर - अप्कायिक ४. पर्याप्त- बादर - अप्कायिक ।
( पहला गमक : औघिक और औधिक)
१७८. भन्ते ! अप्कायिक जीव जो पृथ्वीकायिक- जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते ! वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होता है ?
गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः बाईस ह वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ।
(दूसरे से नवें गमक तक)
- हजार वर्ष की स्थिति
इसी प्रकार पृथ्वीकायिक के गमक सदृश नौ गमक कथनीय हैं, केवल इतना विशेष है— अप्कायिक- जीव का संस्थान स्तिबुक - बिन्दु होता है। स्थिति - जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः सात हजार-वर्ष । इसी प्रकार अनुबन्ध भी। इसी प्रकार तीनों गमकों के विषयों में भी वक्तव्य है। स्थिति ओर कायसंवेध – तीसरे, छट्ठे, सातवें, आठवें और नौवें गमकों
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