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श. १२ : उ. २ : सू. ३९-४८
भगवती सूत्र
३९. वह मृगावती देवो श्रमणोपासिका जयन्ती के साथ बहुत कुब्जा, जैसे-देवानंदा की
वक्तव्यता यावत् श्रमण भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार कर राजा उदयन को आगे कर स्थित हो, परिवार सहित शुश्रुषा और नमस्कार करती हुई सम्मुख रहकर विनयपूर्वक
बद्धांजलि पर्युपासना करने लगी। ४०. श्रमण भगवान महावीर ने राजा उदयन मृगावती देवी और श्रमणोपासिका जयन्ती को इस विशालतम परिषद में यावत् धर्म कहा यावत् परिषद लौट गई, उदयन और मृगावती भी लौट
गई। जयन्ती-प्रश्न-पद ४१. वह श्रमणोपासिका जयंती श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्म को सुनकर, अवधारण कर हृष्ट-तुष्ट हो गई। उसने श्रमण भगवान महावीर को वंदन- नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार कर इस प्रकार कहा-भंते ! जीव गुरुता को कैसे प्राप्त होते हैं ? भारी कैसे बनते हैं ? जयन्ती! प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेय, द्वेष, कलह, अम्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, अरतिरति, मायामृषा और मिथ्यादर्शन-शल्य के द्वारा जीव गुरुता को प्राप्त होते हैं, भारी बनते हैं। ४२. भंते ! जीव लघुता को कैसे प्राप्त होते हैं ? हल्का कैसे बनते हैं ? · जयंती ! प्राणातिपात-विरमण, मृषावाद-विरमण, अदत्तादान-विरमण, मैथुन-विरमण, परिग्रह-विरमण, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेय, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, अरतिरति, मायामृषा और मिथ्यादर्शन-शल्य के विरमण के द्वारा जीव लघुता को
प्राप्त होते हैं, हल्का बनते हैं। ४३. भंते ! जीव संसार को अपरिमित कैसे करते हैं ?
जयंती ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य के द्वारा जीव संसार को अपरिमित करते हैं। ४४. भंते ! जीव संसार को परिमित कैसे करते हैं?
जयंती! प्राणातिपात-विरमण यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य-विरमण से जीव संसार को परिमित करते हैं। ४५. भंते ! जीव संसार को दीर्घकालिक कैसे करते हैं ?
जयंती ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य के द्वारा जीव संसार को दीर्घकालिक करते हैं। ४६. भंते ! जीव संसार को अल्पकालिक कैसे करते है ?
जयंती ! प्राणातिपात-विरमण यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य-विरमण के द्वारा जीव संसार को अल्पकालिक करते हैं। ४७. भंते ! जीव संसार में अनुपरिवर्तन कैसे करते हैं ?
जयन्ती! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य के द्वारा जीव संसार में अनुपरिवर्तन करते हैं। ४८. भंते ! जीव संसार को व्यतिक्रमण कैसे करते हैं ?
जयंती ! प्राणातिपात-विरमण यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य के विरमण से जीव संसार का व्यतिक्रमण करते हैं।
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