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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. २ : सू. १२४-१२९
( चौथा गमक : जघन्य और औधिक)
१२४. वही अपनी जघन्य काल स्थिति में उत्पन्न यौगलिक असुरकुमारों में उपपन्न होता है । वह जघन्यतः दस हजार वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः सातिरेक-कोटि-पूर्व- आयुष्य वाले असुरकुमार के रूप में उपपन्न होता है ।
१२५. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं ? अवशेष पूर्ववत् (भ. २४/१२३) यावत् भव की अपेक्षा तक, इतना विशेष है- अवगाहना – जघन्यतः पृथक्त्व-धनुष, उत्कृष्टतः कुछ अधिक हजार-धनुष । स्थिति - जघन्यतः कुछ अधिक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः भी कुछ- अधिक-कोटि-पूर्व। इसी प्रकार अनुबन्ध भी । काल की अपेक्षा जघन्यतः दस हजार वर्ष- अधिक-सातिरेक-दो-कोटि- पूर्व- इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति आगति करता है।
(पांचवां गमक : जघन्य और जघन्य )
१२६. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक ( यौगलिक )) जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमार के रूप में उपपन्न होता है, वही वक्तव्यता केवल विशेष विशेष है - असुरकुमार की स्थिति और संवेध ज्ञातव्य है । ( स्थिति - जघन्यतः और उत्कृष्टतः दस हजार वर्ष, कायसंवेध - जघन्यतः और वही उत्कृष्टतः दस हजार वर्ष- अधिक-सातिरेक-कोटि- पूर्व ।)
(छट्टा गमक : जघन्य और उत्कृष्ट )
१२७. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक ( यौगलिक)) उत्कृष्ट काल की स्थति वाले असुरकुमार में उपपन्न होता है। वह जघन्यतः कुछ-अधिक-कोटि- पूर्व- आयुष्य वाले, उत्कृष्टतः भी कुछ- अधिक-कोटि- पूर्व- आयुष्य वाले असुरकुमारों में उपपन्न होता हैं, शेष पूर्ववत् । इतना विशेष है-काल की अपेक्षा जघन्यतः सातिरेक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः भी सातिरेक-दो - पूर्व-कोटि- इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति - आगति करता है ।
(सातवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक)
१२८. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय - तिर्यग्योनिक ( यौगलिक)) अपनी उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला जीव हुआ। वह असुरकुमारों में उपपन्न होता है । वही प्रथम गमक की वक्तव्यता, (भ. २४ / १२१) इतना विशेष है- स्थिति जघन्यतः तीन पल्योपम, उत्कृष्टतः भी तीन पल्योपम। इसी प्रकार अनुबन्ध भी । काल की अपेक्षा जघन्यतः दस-हजार- वर्ष अधिक-तीन पल्योपम, उत्कृष्टतः छह पल्योपम - इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति आगति करता है 1
(आठवां गमक : उत्कृष्ट और जघन्य )
१२९. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक ( यौगलिक)) जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उपपन्न होता है। वही वक्तव्यता, (भ. २४/ १२८) इतना विशेष है - असुरकुमार की स्थिति और संवेध ज्ञातव्य है । ( स्थिति - जघन्यतः
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