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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. १ : सू. ११२-११४
टिप्पण (स्थिति जघन्यतः तेतीस सागरोपम, उत्कृष्टतः भी तेतीस सागरोपम, कायसंवेध-जघन्यतः
पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-तेतीस-सागरोपम, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व-अधिक-तेतीस-सागरोपम)। (चौथा, पांचवां, छट्ठा गमक : जघन्य और औधिक, जघन्य और जघन्य, जघन्य और
उत्कृष्ट) ११३. वही अपनी जघन्य काल की स्थिति में उत्पन्न संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्य नैरयिक में उपपन्न होता है। उसके भी तीनों गमकों में वही वक्तव्यता (भ. २४/११०), इतना विशेष है-शरीरावगाहना-जघन्यतः पृथक्त्व-रत्नि, उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-रत्नि, स्थिति-जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष, उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-वर्ष। इसी प्रकार अनुबन्ध भी वक्तव्य है। (पहले गमक में उत्कृष्ट स्थिति कोटि-पूर्व बतलाई है, यहां उत्कृष्ट स्थिति और अनुबन्ध पृथक्त्व-वर्ष वक्तव्य है, चौथे गमक में नैरयिक की स्थिति जघन्यतः
बाईस सागरोपम उत्कृष्टतः तेतीस सागरोपम), कायसंवेध यथोचित वक्तव्य है। टिप्पण
चतुर्थ से छटे गमक तक। (चतुर्थ गमक-कायसंवेध–जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-बाईस-सागरोपम, उत्कृष्टतः पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-तेतीस-सागरोपम, पंचम गमक काय संवेध-जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-बाईस-सागरोपम और उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-बाईस-सागरोपम, षष्ठगमक-कायसंवेध-जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-तेतीस
-सागरोपम और उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-तेतीस-सागरोपम)। (सातवां, आठवां, नवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक, उत्कृष्ट और जघन्य, उत्कृष्ट और
उत्कृष्ट) ११४. वही अपनी उत्कृष्ट काल स्थिति में उत्पन्न संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्य नैरयिकों में उपपन्न होता है। उसके भी तीनों गमकों में (सातवें, आठवें, नवमें) वही वक्तव्यता (भ. २४/११०), इतना विशेष है-शरीरावगाहना-जघन्यतः पांच सौ धनुष, उत्कृष्टतः भी पांच सौ धनुष। स्थिति जघन्यतः कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः भी कोटि-पूर्व। इसी प्रकार अनुबन्ध भी (पहले गमक में स्थिति और अनुबन्ध में जघन्यतः पृथक्त्व वर्ष था, यहां जघन्यतः कोटि-पूर्व वक्तव्य है।) इन नव ही गमकों में भी नैरयिक स्थिति और कायसंवेध ज्ञातव्य है। सर्वत्र दो भव-ग्रहण यावत् नौवां गमक। (सप्तम गमक-स्थिति-जघन्यतः बाईस सागरोपम, उत्कृष्टतः तेतीस सागरोपम, कायसंवेध-जघन्यतः कोटि-पूर्व-अधिक-बाईस-सागरोपम, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व-अधिक-तेतीस-सागरोपम, अष्टम गमक-स्थिति-जघन्यतः बाईस-सागरोपम, उत्कृष्टतः भी बाईस-सागरोपम, कायसंवेध–जघन्यतः कोटि-पूर्व-अधिक-बाईस-सागरोपम, उत्कृष्टतः भी कोटि-पूर्व-अधिक-बाईस-सागरोपम, नवम गमक-स्थिति-जघन्यतः तेतीस-सागरोपम, उत्कृष्टतः भी तेतीस-सागरोपम। काल की अपेक्षा जघन्यतः कोटि-पूर्व-अधिक-तेतीस-सागरोपम, उत्कृष्टतः भी कोटि-पूर्व-अधिक-तेतीस-सागरोपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है।
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