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श. २४ : उ. १ : सू. ७४-७९
भगवती सूत्र (आठवां गमक : उत्कृष्ट और जघन्य) ७४. वही जघन्य काल की स्थिति वाला संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव जघन्य काल की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है-जघन्यतः दस-हजार-वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी दस-हजार-वर्ष की स्थिति वाले
नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है। ७५. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं? वही सप्तम गमक अविकल रूप से वक्तव्य है यावत् भवादेश-भव की अपेक्षा तक। काल की अपेक्षा जघन्यतः दस-हजार-वर्ष-अधिक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः चालीस-हजार-वर्ष-अधिक-चार-कोटि-पूर्व-इतने काल तक रहते हैं, इतने काल तक गति-आगति करते हैं। (नवां गमक : उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) ७६. भन्ते! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव जो उत्कृष्ट काल की स्थिति वाली रत्नप्रभा-पृथ्वी में नैरयिक के रूप में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते! वह जीव कितने काल की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है? गौतम! जघन्यतः एक सागरोपम की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है। ७७. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं? वही सप्तम गमक निरवशेष वक्तव्य है यावत् भवादेश-भव की अपेक्षा तक। काल की अपेक्षा जघयतः कोटि-पूर्व-अधिक-एक-सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-कोटि-पूर्व-अधिक-चार-सागरोपम-इतने काल तक रहते हैं, इतने काल तक गति-आगति करते हैं। इस प्रकार ये नौ गमक हैं। नव ही गमकों में उत्क्षेप-गमक की प्रस्तावना और निक्षेप-गमक का निगमन पर्याप्तक-असंज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों की भांति वक्तव्य है। तीसरा आलापक : दूसरी नरक में संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-तिर्यंच-पंचेन्द्रिय
-जीवों का उपपात आदि (पहला गमक : औधिक और औधिक) ७८. भन्ते! संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीव-जो
शर्कराप्रभा-पृथ्वी में नैरयिक के रूप में उपपन्न होने योग्य है, भंते! वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है?
गौतम! जघन्यतः एक सागरोपम की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः तीन सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है। ७९. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं? इस प्रकार जैसे रत्नप्रभा में उपपद्यमान जीव के परिमाण, संहनन आदि की प्राप्ति बतलाई गई है, वही निरवशेष वक्तव्य है यावत् भवादेश-भव की अपेक्षा तक। काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-एक
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