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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. १ : सू. ३४-४१
रत्नप्रभा - पृथ्वी में नैरयिकों में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते ! वह कितनी स्थिति वाले नैरयिकों में उपपन्न होगा ?
गौतम ! जघन्यतः दस हजार वर्ष स्थिति वाले नैरयिकों में, उत्कृष्टतः पल्योपम-के- असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उपपन्न होता है ।
३५. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं ?
शेष पूर्ववत् । इतना विशेष है ये तीन नानात्व हैं- आयुष्य, अध्यवसान और अनुबन्ध । जघन्यतः स्थिति अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः भी अन्तर्मुहूर्त्त ।
३६. भन्ते ! उन जीवों के कितने अध्यवसान प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! असंख्यात अध्यवसान प्रज्ञप्त हैं ।
३७. भन्ते! वे जीव क्या प्रशस्त अध्यवसान वाले होते हैं? अप्रशस्त अध्यवसान वाले होते हैं ?
गौतम ! प्रशस्त अध्यवसान वाले नहीं होते, अप्रशस्त अध्यवसान वाले होते हैं। उनका अनुबंध अंतर्मुहूर्त का होता है, शेष पूर्ववत् ।
३८. भन्ते ! जघन्य काल की स्थिति वाला पर्याप्तक- असंज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक - जीव रत्नप्रभा - पृथ्वी में यावत् गति- आगति करता है ?
गौतम ! भव की अपेक्षा वह दो भव ग्रहण करता है, काल की अपेक्षा वह जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त अधिक-दस हजार वर्ष, उत्कृष्टतः अंतर्मुहूर्त्त अधिक-पल्योपम-का- असंख्यातवां भाग - इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति - आगति करता है । (पांचवां गमक : जघन्य और जघन्य )
३९. भन्ते ! जघन्य काल की स्थिति वाला पर्याप्तक असंज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक - जीव जघन्य काल की स्थिति वाली रत्नप्रभा - पृथ्वी (प्रथम नरक) में नैरयिक के रूप में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते ! वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है ?
गौतम ! जघन्यतः दस हजार वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है ।
४०. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं ? शेष उसी प्रकार वक्तव्य है, उनके तीन नानात्व हैं-आयु, अध्यवसाय, अनुबंध यावत् - (भ. २४।८-२६,३५-३७)
४१. भन्ते ! वह जघन्य काल की स्थिति वाला पर्याप्तक- असंज्ञी - पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव जघन्य काल की स्थिति वाली रत्नप्रभा - पृथ्वी में नैरयिक होकर पुनः पर्याप्तक-असंज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक के रूप में उपपन्न होता है, वह कितने काल तक रहता है ? कितने काल तक वह गति - आगति करता है ?
गौतम ! भव की अपेक्षा दो भव ग्रहण करता है, काल की अपेक्षा जघन्यतः अंतर्मुहूर्त- अधिक - दस हजार वर्ष, उत्कृष्टतः भी अंतर्मुहूर्त्त अधिक दस हजार वर्ष - इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति आगति करता है।
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