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भगवती सूत्र
श. २२ : व. २-६ : उ. १-१० : सू. २-६ सेहुंड कायफल, अशोक इनके जो जीव मूल-रूप में उपपन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहां से (आकर) उपपन्न होते हैं? इस प्रकार इन जीवों के संदर्भ में मूल आदि दस उद्देशक वैसे ही निरवशेष वक्तव्य हैं जैसे (भ. २२/१ में) ताल-वर्ग के संदर्भ में कहे गए
तीसरा वर्ग हडसंधारी-आदि बहुबीजक-वृक्षों में उपपात-आदि-पद ३. भंते! हडसंधारी-हडजोड़ी, तेंदु-आबनूस, बदर(सेव), कैथ, आमड़ा, बिजौरा, नींबू, बेल, आंवला, कटहल्ल, अनार, पीपल, गूलर, बड़, खेजड़ी, तून, पीपर, शतावरी, पाकर, कटूमर, धनिया, धधर बेल, तिलिया, बडहर, गुण्डतृण, सिरस, छतिवन, दधिपर्ण, लोध, धौं, चंदन, अर्जुन, नीम-धाराकदम्ब, कुटज-कूड़ा, कदम्ब–इनके जो जीव मूल-रूप में उपपन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहां से (आकर) उपपन्न होते हैं? इस प्रकार इन जीवों के संदर्भ में मूल आदि दस उद्देशक (भ. २२/१ में कहे गए) ताल-वर्ग के सदृश जानने चाहिए। यावत् बीज।
चौथा वर्ग बैंगन-आदि गुच्छों म उपपात-आदि-पद ४. भंते! बैंगन, सलइ, बोदरी, इस प्रकार पण्णवणा (१/३७) की गाथानुसार ज्ञातव्य है, यावत् गांजा, पाढल, नील कटसरैया, ढेरा तक इनके जो जीव मूल-रूप में उत्पन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहां से (आकर) उपपन्न होते हैं? इस प्रकार इन जीवों के संदर्भ में मूल आदि दस उद्देशक (भ. २१/१७ में कहे गए) वंश-वर्ग के सदृश जानने चाहिए यावत् बीज।
पांचवां वर्ग श्वेतपुष्प-कटसरैया-आदि गल्मों में उपपात-आदि-पद ५. भंते! श्वेतपुष्पवाली कटसरैया, नेवारी, पीले फूलवाली कटसरैया, दुपहरिया, कामजा, इस प्रकार पण्णवणा (१/३८) की गाथानुसार ज्ञातव्य है, यावत् महामेदा, कुंद, वासंती पुष्पलता-इनके जो जीव मूल-रूप में उत्पन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहां से (आकर) उपपन्न होते हैं? इस प्रकार इन जीवों के संदर्भ में मूल आदि दस उद्देशक (भ. २१/१- १४ में कहे गए) शालि-वर्ग को भांति निरवशेष जानने चाहिए।
छठा वर्ग ६. भंते! कुम्हडी, तरबूज, कड़वी तुम्बी, खीरा, बालुकाशाक, इस प्रकार पण्णवणा (पद १, वल्लि-वर्ग) के अनुसार पदच्छेद करणीय है, यावत् सेमचरिया, काकलिदाख, जंगली एरण्ड, सूरजमुखी तक-इनके जो जीव मूल-रूप में उत्पन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहां से (आकर) उपपन्न होते हैं? इस प्रकार इन जीवों के संदर्भ में मूल आदि दस उद्देशक (भ.
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