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श. २० : उ. १० : सू. ११५-१२०
भगवती सूत्र
कहा जा रहा है यावत् अनेक-द्वादश-नोद्वादश-समर्जित भी हैं। इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक की वक्तव्यता। द्वीन्द्रिय यावत् सिद्धों की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। ११६. भंते! इन नैरयिकों के द्वादश-समर्जित–इन सबके अल्प-बहुत्व की षट्क-समर्जितों की
भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-द्वादश अभिलाप्य है, शेष पूर्ववत्। चतुरशीति-समर्जित-आदि-पद ११७. भंते! क्या नैरयिक चतुरशीति(चौरासी)-समर्जित हैं? नोचतुरशीति-समर्जित हैं?
चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित हैं? अनेक-चतुरशीति-समर्जित हैं? अनेक-चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित हैं? गौतम! नैरयिक चतुरशीति-समर्जित भी हैं यावत् अनेक-चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित
भी हैं। ११८. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् अनेक-चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित
भी हैं? गौतम! जो नैरयिक चौरासी-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीति-समर्जित हैं। जो नैरयिक जघन्यतः एक-, दो-, तीन- उत्कृष्टतः तिरासी-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे नोचतुरशीति-समर्जित हैं। जो नैरयिक चौरासी- तथा अन्य जघन्यतः एक-, दो-, तीन-उत्कृष्टतः तिरासी-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित हैं। जो नैरयिक अनेक-चौरासी-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक-चतुरशीति-समर्जित हैं। जो नैरयिक अनेक-चौरासी- तथा अन्य जघन्यतः एक-, दो-, तीन- उत्कृष्टतः तिरासी-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक-चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् अनेक-चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित भी हैं। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता। पृथ्वीकायिक की अंतिम दो विकल्पों की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-चौरासी अभिलाप्य है। इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक की वक्तव्यता। द्वीन्द्रिय यावत् वैमानिकों की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। ११९. सिद्धों की पृच्छा। गौतम! सिद्ध चतुरशीति-समर्जित भी हैं, नोचतुरशीति-समर्जित भी हैं, चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित भी हैं, अनेक-चतुरशीति-समर्जित नहीं है, अनेक-चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित नहीं हैं। १२०. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् अनेक, चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित
नहीं हैं? गौतम! जो सिद्ध चौरासी-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीति-समर्जित हैं। जो सिद्ध जघन्यतः एक-, दो-, तीन- उत्कृष्टतः तिरासी-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे नोचतुरशीति-समर्जित हैं। जो सिद्ध चौरासी- तथा अन्य जघन्यतः, एक-, दो-, तीन-उत्कृष्टतः तिरासी-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित हैं।
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