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भगवती सूत्र
श. २० : उ. ९ : सू. ८२-८७
समवसरण करता वहां चत्यों को वंदन करता है, वंदन कर वहां से लौटता है, लौट कर जंबूद्वीप द्वीप में आता है, यहां आकर चैत्यों को वंदन करता है । गौतम ! विद्याचारण का इतना तिर्यग्गति-विषय प्रज्ञप्त है ।
८३. भंते! विद्याचारण का ऊर्ध्व - गति - विषय कितना प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! वह जंबूद्वीप - द्वीप से एक उड़ान में नंदन-वन में समवसरण करता है, समवसरण कर वहां चैत्यों को वंदन करता है, वंदन कर दूसरी उड़ान में पंडक वन में समवसरण करता है। समवसरण कर वहां चैत्यों को वंदन करता है, वंदन कर वहां से लौटता है, लौट कर जंबूद्वीप- द्वीप में आता है। यहां आकर चैत्यों को वंदन करता है। गौतम ! विद्याचारण का ऊर्ध्व-गति-विषय इतना प्रज्ञप्त है। जो उस स्थान की आलोचना - प्रतिक्रमण किए बिना मृत्यु को प्राप्त होता है, उसके आराधना नहीं होती। उस स्थान की आलोचना-प्रतिक्रमण कर मृत्यु को प्राप्त होता है, उसके आराधना होती है ।
८४. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- जंघाचारण जंघाचारण है ?
गौतम ! निरंतर तेले-तेले तप के द्वारा अपनी आत्मा को भावित करने वाले के जंघाचारण लब्धि नामक लब्धि समुत्पन्न होती है ।
गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है जंघाचारण जंघाचारण है ।
८५. भंते! जंघाचारण की शीघ्र गति कैसी होती है? उसका शीघ्र गति-विषय कितना प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! इस जंबूद्वीप- द्वीप में यावत् उसका परिक्षेप तीन लाख, सोलह हजार दो सौ अठाईस योजन, तीन कोस एक सौ अठाईस धनुष और साढ़ा तेरह अंगुल से कुछ अधिक प्रज्ञप्त है। महर्द्धिक देव यावत् महान् ऐश्वर्य शाली यावत् यह रहा, यह रहा, इस प्रकार कह कर संपूर्ण जंबूद्वीप द्वीप में तीन बार चुटकी बजाने जितने समय में इक्कीस बार घूम कर शीघ्र ही आ जाता है। गौतम ! जंघाचारण की वैसी शीघ्र गति है, वैसा शीघ्र गति - विषय प्रज्ञप्त है ।
८६. भंते! जंघाचारण का तिर्यग्गति-विषय कितना प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! वह जंबूद्वीप- द्वीप से एक उड़ान में रुचकवर - द्वीप में समवसरण करता है, समवसरण कर वहां चैत्यों को वंदन करता है, वंदन कर वहां से लौटते हुए दूसरी उड़ान में नंदीश्वर - द्वीप में समवसरण करता है, समवसरण कर वहां चैत्यों को वंदन करता है, वंदन कर जंबूद्वीप - द्वीप में आता है, यहां आकर चैत्यों को वंदन करता है ।
गौतम ! जंघाचारण का तिर्यग्गति-विषय इतना प्रज्ञप्त है।
८७. भंते! जंघाचारण का ऊर्ध्व-गति - विषय कितना प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! वह जंबूद्वीप - द्वीप से एक उड़ान में पंडक वन में समवसरण करता है, समवसरण कर वहां चैत्यों को वंदन करता है, वंदन कर वहां से लौटते हुए दूसरी उड़ान में नंदन-वन में समवसरण करता है, समवसरण कर वहां चैत्यों को वंदन करता है, वंदन कर जंबूद्वीप
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