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श. १२ : उ. १ : सू. ६-११
भगवती सूत्र ६. उस श्रमणोपासक शंख के मन में इस आकारवाला आध्यात्मिक, स्मृत्यात्मक,
अभिलाषात्मक, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ। यह मेरे लिए श्रेयस्कर नहीं है कि मैं उस विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य को स्वाद लेता हुआ, विशिष्ट स्वाद लेता हुआ, परस्पर एक-दूसरे को खिलाता हुआ, भोजन करता हुआ, पाक्षिक पौषध की प्रतिजागरणा करता हुआ विहरण करूं, यह मेरे लिए श्रेयस्कर है कि मैं पौषधशाला में उपवास करूं । ब्रह्मचारी रहूं। सुवर्ण-मणि को छोड़कर, माला, सुगंधित चूर्ण और विलेपन से रहित, शस्त्र-मूसल आदि का वर्जन कर अकेला, दूसरों के सहाय्य से निरपेक्ष होकर, दर्भ-संस्तारक पर बैठ कर पाक्षिक पौषध की प्रतिजागरणा करूं। इस प्रकार संप्रेक्षा की, संप्रेक्षा कर जहां श्रावस्ती नगरी थी, जहां अपना घर था, जहां श्रमणोपासिका उत्पला थी, वहाँ आया, वहां आकर श्रमणोपासिका उत्पला से पूछा, पूछ कर जहां पौषधशाला थी, वहां आया वहां आकर पौषधशाला में अनुप्रवेश किया, अनुप्रवेश कर पौषधशाला को प्रमार्जित किया, प्रमार्जित कर उच्चार-प्रसवणभूमि का प्रतिलेखन किया, प्रतिलेखन कर दर्भ-संस्तारक को बिछाया, बिछाकर दर्भ-संस्तारक पर आरूढ़ हुआ, आरूढ़ होकर पौषधशाला में ब्रह्मचर्य-पूर्वक उपवास किया, सुवर्ण-मणि को छोड़कर, माला, सुगंधित चूर्ण और विलेपन से रहित, शस्त्र-मूसल आदि का वर्जन कर, अकेले, सहाय्य निरपेक्ष होकर दर्भ-संस्तारक पर बैठकर पाक्षिक पौषध की प्रतिजागरणा करने लगा। ७. वे श्रमणोपासक जहां श्रावस्ती नगरी थी, जहां अपना-अपना घर था, वहां आए। वहां
आकर विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य को तैयार करवाया, तैयार करवा कर एक-दूसरे को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार बोले-देवानुप्रिय ! हमने वह विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवाया है। देवानुप्रिय ! श्रमणोपासक शंख अभी तक नहीं आया, इसलिए यह श्रेयस्कर है कि हम श्रमणोपासक शंख को बुला लाए। ८. वह श्रमणोपासक पुष्कली उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार बोला-देवानुप्रियो ! तुम अच्छी तरह बैठो, विश्वस्त रहो, मैं श्रमणोपासक शंख को बुला लाता हूं। ऐसा कहकर उसने श्रमणोपासकों के पास से प्रतिनिष्क्रमण किया। प्रतिनिष्क्रमण कर श्रावस्ती नगरी के बीचोंबीच जहां श्रमणोपासक शंख का घर था, वहां आया, वहां आकर श्रमणोपासक शंख
के घर में अनुप्रविष्ट हुआ। ९. श्रमणोपासिका उत्पला ने श्रमणोपासक पुष्कली को आते हुए देखा, देखकर हृष्ट-तुष्ट हो गई, आसन से उठी, उठकर सात-आठ कदम सामने गई। सामने जाकर श्रमणोपासक पुष्कली को वंदन-नमस्कार किया। वंदन-नमस्कार कर आसन पर बैठने के लिए निमंत्रित किया। निमंत्रित कर इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय ! कहिए, आपके आगमन का प्रयोजन क्या है? १०. श्रमणोपासक पुष्कली ने श्रमणोपासिका उत्पला से इस प्रकार कहा–देवानुप्रिये !
श्रमणोपासक शंख कहां है ? ११. वह श्रमणोपासिका उत्पला श्रमणोपासक पुष्कली से इस प्रकार बोली-देवानुप्रिय! श्रमणोपासक शंख ने पौषधशाला में ब्रह्मचर्य-पूर्वक उपवास किया है, सुवर्ण-मणि को छोड़कर माला, सुगंधित चूर्ण और विलेपन से रहित, शस्त्र-मूसल आदि का वर्जन कर
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