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श. २० : उ. २-४ : सू. १८-२५
भगवती सूत्र १८. भंते! पुद्गलास्तिकाय के कितन अभिवचन प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! अनेक अभिवचन प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पुद्गल, पुद्गलास्तिकाय, परमाणु-पुद्गल, द्वि-प्रदेशी, त्रि-प्रदेशी यावत् असंख्येय-प्रदेशी, अनंत-प्रदेशी स्कंध, जो अन्य भी इस प्रकार
के हैं, वे सब पुद्गलास्तिकाय के अभिवचन हैं। १९. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
तीसरा उद्देशक प्राणातिपात-आदि का आत्मा में परिणति-पद २०. भंते! प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य, प्राणातिपात-विरमण यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य-विवेक, औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा, परिणामजा, अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा, उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार-पराक्रम, नैरयिकत्व, असुरकुमारत्व यावत् वैमानिकत्व, ज्ञानावरणीय यावत् आंतरायिक, कृष्ण-लेश्या यावत् शुक्ल-लेश्या, सम्यग्-दृष्टि, मिथ्या-दृष्टि, सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि, चक्षु-दर्शन, अचक्षु-दर्शन, अवधि-दर्शन, केवल-दर्शन, आभिनिबोधिक-ज्ञान यावत् विभंग-ज्ञान, आहार-संज्ञा, भय-संज्ञा, मैथुन-संज्ञा, परिग्रह-संज्ञा, औदारिक-शरीर, वैक्रिय-शरीर, आहारक-शरीर, तैजस-शरीर, कर्मक-शरीर, मन-योग, वचन-योग, काय-योग, साकारोपयोग, अनाकारोपयोग-जो अन्य भी इस प्रकार के हैं, वे सब आत्मा के सिवाय अन्यत्र कहीं परिणत नहीं होते? हां, गौतम! प्राणातिपात यावत् ये सब आत्मा के सिवाय अन्यत्र कहीं परिणत नहीं होते। गर्भ-अवक्रममाण के वर्ण-आदि-पद २१. भंते! गर्भ में अवक्रमण करता हुआ जीव कितने वर्ण, कितने गंध, कितने रस और कितने रस के परिणामों से परिणत होता है? गौतम! पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श के परिणामों से परिणत होता है। २२. भंते ! क्या जीव कर्म से विभक्ति-भाव (नरक, मनुष्य आदि भव) में परिणमन करता है, अकर्म से विभक्ति-भाव में परिणमन नहीं करता? क्या जगत् कर्म से विभक्ति-भाव में परिणमन करता है ? अकर्म से विभक्ति-भाव में परिणमन नहीं करता? हां! गौतम ! जीव कर्म से विभक्ति-भाव में परिणमन करता है, अकर्म से नहीं, जगत् कर्म से विभक्ति-भाव में परिणमन करता है, अकर्म से नहीं। २३. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
चौथा उद्देशक
इन्द्रिय-उपचय-पद २४. भंते! इन्द्रिय-उपचय कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! इन्द्रिय-उपचय पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे श्रोत्रेन्द्रिय-उपचय, इस प्रकार
पण्णवणा का द्वितीय उद्देशक (१५/२) निरवशेष वक्तव्य है। २५. भंते ! वह ऐसा ही है। भते! वह ऐसा ही है। भगवान् गौतम यावत् विहरण करने लगे।
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