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भगवती सूत्र
श. १८ : उ. १० : सू. २१३-२१८ सोमिल! सरिसवय मेरे लिए भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य भी हैं। २१४. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है सरिसवय मेरे लिए भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य
भी हैं? सोमिल! ब्राह्मण-नय में सरिसवय के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-मित्र-सरिसवय (सदृश वयसाः सवयाः) और धान्य-सरिसवय। जो मित्र-सरिसवय हैं, वे तीन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सह-जात, सह-वर्धित, सह-पांशु-क्रीडित। वे श्रमण-निग्रंथों के लिए अभक्ष्य हैं। जो धान्य-सर्षप हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं जैसे शस्त्र-परिणत और अशस्त्र-परिणत। जो अशस्त्र-परिणत हैं, वे श्रमण-निग्रंथों के लिए अभक्ष्य हैं। जो शस्त्र-परिणत हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-एषणीय और अनेषणीय। जो अनेषणीय हैं, वे श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। जो एषणीय हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-याचित और अयाचित। अयाचित हैं, वे श्रमण-निग्रंथों के लिए अभक्ष्य हैं। जो याचित हैं वे दो प्रकार के प्रजप्त हैं जैसे लब्ध और अलब्ध। जो अलब्ध हैं, वे श्रमण-निर्ग्रथों के लिए अभक्ष्य हैं। जो लब्ध हैं, वे श्रमण निग्रंथों के लिए भक्ष्य हैं। सोमिल! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सरिसवय मेरे लिए भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य भी हैं। २१५. भंते! तुम्हारे लिए माष भक्ष्य हैं या अभक्ष्य?
सोमिल! माष मेरे लिए भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य भी हैं। २१६. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा-माष मेरे लिए भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य भी हैं?
सोमिल! ब्राह्मण-नय में माष दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, द्रव्य-माष, काल-मास। जो काल-मास हैं वे श्रावण आदि से आषाढ़ पर्यवसान तक बारह प्रज्ञप्त हैं, जैसे-श्रावण, भाद्रव, आश्विन, कार्तिक, मृगशिर, पौष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठामूल और आषाढ़। वे श्रमण-निग्रंथों के लिए अभक्ष्य हैं। जो द्रव्य-माष हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अर्थ-माष, धान्य-माष । जो अर्थ-माष हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-स्वर्ण-माष, रूप्य-माष। वे श्रमण-निग्रंथों के लिए अभक्ष्य हैं। जो धान्य-माष हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे शस्त्र-परिणत और अशस्त्र-परिणत । इसी प्रकार धान्य-सरिसवय की भांति वक्तव्यता, यावत् इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा
है-माष भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य भी हैं। २१७. भंते! तुम्हारे कुलथा भक्ष्य हैं या अभक्ष्य?
सोमिल! कुलथा मेरे लिए भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य भी हैं। २१८. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् अभक्ष्य भी है? सोमिल! ब्राह्मण-नय में कुलथा दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं जैसे-स्त्री-कुलथा और धान्य-कुलथा। जो स्त्री-कुलथा हैं, वे तीन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-कुल-वधू, कुल-माता, कुल-पुत्री। वे श्रमण-निग्रंथों के लिए अभक्ष्य हैं।
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