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भगवती सूत्र
श. १८ : उ. ८ : सू. १७५-१८२
१७५. भंते! छद्मस्थ-मनुष्य क्या द्वि-प्रदेशी स्कंध को जानता देखता है ? अथवा नहीं जानता, नहीं देखता ?
गौतम ! कोई जानता है, देखता नहीं। कोई नहीं जानता है, नहीं देखता है। यावत् असंख्येय- प्रदेशी स्कंध की वक्तव्यता ।
१७६. भंते! छद्मस्थ मनुष्य क्या अनंत- प्रदेशी स्कंध को जानता देखता है ? अथवा नहीं जानता, नहीं देखता ?
गौतम ! कोई जानता देखता है। कोई जानता है, नहीं देखता । कोई नहीं जानता, देखता है । कोई नहीं जानता, नहीं देखता ।
१७७. भंते! आधोवधिक - मनुष्य परमाणु- पुद्गल को जानता देखता है अथवा नहीं जानता नहीं देखता ? छद्मस्थ की भांति आधोवधिक की वक्तव्यता, परमाणु की भांति अनंत- प्रदेशिक स्कंध की वक्तव्यता ।
१७८. भंते! परमाधोवधिक - मनुष्य परमाणु- पुद्गल को जिस समय जानता है, उस समय देखता है ? जिस समय देखता है, उस समय जानता है ?
यह अर्थ संगत नहीं है ।
१७९. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - परमाधोवधिक - मनुष्य परमाणु - पुद्गल को जिस समय जानता है? उस समय नहीं देखता ? जिस समय देखता है, उस समय नहीं जानता ?
गौतम ! ज्ञान साकार होता है। और दर्शन अनाकार । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है— परमाधोवधिक-मनुष्य परमाणु- पुद्गल को जिस समय जानता है, उस समय नहीं देखता । जिस समय देखता है, उस समय नहीं जानता। इस प्रकार यावत् अनंत-प्रदेशिक स्कंध की वक्तव्यता ।
१८०. भंते! केवली मनुष्य क्या परमाणु- पुद्गल को जिस समय जानता है, उस समय देखता है ? जिस समय देखता है, उस समय जानता है ?
यह अर्थ संगत नहीं है ।
१८१. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - केवली मनुष्य परमाणु- पुद्गल को जिस समय जानता है, उस समय नहीं देखता ? जिस समय देखता है, उस समय नहीं जानता ? गौतम ! ज्ञान साकार होता है और दर्शन अनाकार । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है- केवली मनुष्य परमाणु- पुद्गल को जिस समय जानता है, उस समय नहीं देखता । जिस समय देखता है, उस समय नहीं जानता। इस प्रकार यावत् अनंत- प्रदेशी स्कंध की
वक्तव्यता ।
१८२. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है ।
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