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श. १८ : उ. ७,८ : सू. १५७-१६५
भगवती सूत्र -लाख-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। सर्वार्थसिद्ध-देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्मपुद्गलों को पांच-लाख-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। गौतम ! ये जो देव हैं, वे विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को जघन्यतः सौ-, दो-सौ-, तीन-सौ- उत्कृष्टतः पांच-लाख-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। १५८. भंते! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही है।
आठवां उद्देशक ईर्या की अपेक्षा गौतम का संवाद-पद १५९. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते! भावितात्मा अनगार सामने दोनों
ओर युगमात्र (शरीर-प्रमाण) भूमि की प्रेक्षाकर चल रहा है। उसके पैर के नीचे मुर्गी का शावक, बत्तख का शावक, कुलिंग का शावक मर जाए तो भंते ! क्या उस भावितात्मा अनगार के ईर्यापथिकी-क्रिया होती है? साम्परायिकी-क्रिया होती है? गौतम! भावितात्मा अनगार सामने दोनों ओर युगमात्र-भूमि की प्रेक्षा कर चल रहा है। उसके पैर के नीचे मुर्गी का शावक, बत्तख का शावक, कुलिंग का शावक मर जाए तो उस भावितात्मा अनगार के ईर्यापथिकी-क्रिया होती है, सांपरायिकी-क्रिया नहीं होती। १६०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है?
गौतम! जिसके क्रोध, मान, माया, लोभ व्युच्छिन्न हो जाते हैं, उसके ऐर्यापथिकी-क्रिया होती है। जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ व्युच्छिन्न नहीं होते, उसके सांपरायिकी-क्रिया होती है। यथासूत्र-सूत्र के अनुसार चलने वाले के ईर्यापथिकी-क्रिया होती है। उत्सूत्र-सूत्र के विपरीत चलने वाले के सांपरायिकी-क्रिया होती है। भावितात्मा अनगार यथासूत्र चलते हैं। यह इस अपेक्षा से कहा जाता है। १६१. भंते! वह ऐसा ही है, भंते! वह ऐसा ही है। यावत् विहरण करने लगे। १६२. श्रमण भगवान् महावीर ने किसी दिन राजगृह नगर से गुणशिलक चैत्य से
प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर नगर से बाहर जनपद विहार करने लगे। अन्ययूथिक-आरोप-पद १६३. उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था। गुणशिलक चैत्य-वर्णक
यावत् पृथ्वी-शिला-पट्टक। उस गुणशिलक चैत्य के न दूर, न निकट बहुत अन्ययूथिक रहते थे। श्रमण भगवान् महावीर यावत् समवसृत हुए यावत् परिषद् लौट गई। १६४. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ अंतेवासी इंद्रभूति नाम
का अनगार यावत् ऊर्ध्व-जानु, अधःसिर (उकडू-आसन की मुद्रा में) और ध्यान-कोष्ठ में
लीन होकर संयम और तप से अपने-आपको भावित करते हुए विहरण कर रहे थे। १६५. वे अन्ययूथिक जहां भगवान् गौतम थे, वहां आए, वहां आकर भगवान् गौतम ने इस प्रकार कहा-आर्यो! तुम तीन योग और तीन करण से असंयत, अविरत, अतीत के पाप
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