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भगवती सूत्र
श. १८ : उ. ४ : सू. ८९-९६
यग्म-पद ८९. भंते! युग्म (राशि-विशेष) कितने प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! युग्म चार प्रज्ञप्त हैं, जैसे कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म, कल्योज। ९०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है, यावत् कल्योज है?
गौतम! जिस राशि में से चार-चार निकालने के बाद शेष चार रहे, वह है कुतयुग्म। जिस राशि में से चार-चार निकालने के बाद शेष तीन रहे, वह है त्र्योज। जिस राशि में से चार-चार निकालने के बाद शेष दो रहे, वह है द्वापरयुग्म। जिस राशि में से चार-चार निकालने के बाद शेष एक रहे, वह है कल्योज। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा
है यावत् कल्योज है। ९१. भंते! नैरयिक क्या कुतयुग्म हैं? त्र्योज हैं? द्वापरयुग्म हैं? कल्योज हैं?
गौतम! जघन्य-पद में कृतयुग्म हैं। उत्कृष्ट-पद में त्र्योज हैं। अजघन्य-अनुत्कृष्ट पद में स्यात् कुतयुग्म यावत् स्यात् त्र्योज हैं। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता। ९२. वनस्पतिकायिक-पृच्छा। गौतम! जघन्य-पद में अपद हैं, उत्कृष्ट-पद में अपद हैं। अजघन्य-अनुत्कृष्ट-पद में स्यात्
कुतयुग्म यावत् स्यात् कल्योज हैं। ९३. द्वीन्द्रिय की पृच्छा। गौतम! जघन्य-पद में कुतयुग्म, उत्कृष्ट-पद में द्वापरयुग्म, अजघन्य-अनुत्कृष्ट-पद में स्यात् कृतयुग्म यावत् स्यात् कल्योज है। इस प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय की वक्तव्यता। शेष एकेन्द्रियों की द्वीन्द्रिय की भांति वक्तव्यता। पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक यावत् वैमानिकों की
नैरयिक की भांति वक्तव्यता। सिद्धों की वनस्पतिकायिक की भांति वक्तव्यता। ९४. भंते! स्त्रियां क्या कृतयुग्म हैं-पृच्छा।
गौतम! जघन्य-पद में कृतयुग्म, उत्कृष्ट-पद में स्यात् कल्योज है। इसी प्रकार असुरकुमार-देवियां यावत् स्तनितकुमार-देवियों की वक्तव्यता। इसी प्रकार तिर्यग्योनिक-स्त्रियों, मनुष्य-स्त्रियों की वक्तव्यता। इसी प्रकार वाणमंतर-, ज्योतिष्क- और वैमानिक-देवियों की
वक्तव्यता। अंधकवृष्णि-जीवों का वर-पर-पद ९५. भंते! जितने अंधकवृष्णि-जीव वर हैं, उतने ही अंधकवृष्णि-जीव पर हैं?
हां, गौतम! जितने अंधकवृष्णि-जीव वर हैं, उतने ही अंधकवृष्णि-जीव पर हैं। ९६. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह एसा ही है।
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