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श. १७ : उ. ४ : सू. ५५-६४
५५. भंते! जीवों के मृषावाद - क्रिया होती है ?
हां, होती है ।
५६. भंते! क्या वह स्पृष्ट होती है ? अस्पृष्ट होती है ?
प्राणातिपात की भांति मृषावाद का दंडक वक्तव्य है । इसी प्रकार अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह की वक्तव्यता । इस प्रकार ये पांच दंडक हैं।
भगवती सूत्र
५७. भंते! जिस समय जीवों के प्राणातिपात- क्रिया होती है, भंते! क्या वह स्पृष्ट होती है ? अस्पृष्ट होती है? इसी प्रकार यावत् वक्तव्य है, यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता । इसी प्रकार परिग्रह की वक्तव्यता । इसी प्रकार ये पांच दंडक हैं ।
५८. भंते! जिस देश में जीवों के प्राणातिपात क्रिया होती है ? पूर्ववत् यावत् परिग्रह की वक्तव्यता । ये पांच दंडक हैं।
५९. भंते! जिस प्रदेश में जीवों के प्राणातिपात-क्रिया होती है। भंते! क्या वह स्पृष्ट होती है? इसी प्रकार दंडक वक्तव्य है । इसी प्रकार यावत् परिग्रह की वक्तव्यता । इस प्रकार ये बीस दंडक हैं।
दुःख-वेदना-पद
६०. भंते! क्या जीवों के दुःख आत्म-कृत है, क्या दुःख पर-कृत है ? क्या दुःख उभय- कृत है ?
गौतम ! दुःख आत्म-कृत है । दुःख पर - कृत नहीं है, दुःख उभय-कृत नहीं है। इसी प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता ।
६१. भंते! क्या जीव आत्म-कृत दुःख का वेदन करते हैं, पर-कृत दुःख का वेदन करते हैं ? उभय-कृत दुःख का वेदन करते हैं ?
गौतम ! आत्म-कृत दुःख का वेदन करते हैं, पर कृत दुःख का वेदन नहीं करते, उभय- कृत दुःख का वेदन नहीं करते। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता ।
६२. भंते! क्या जीवों के वेदना आत्म-कृत है ? क्या वेदना पर कृत है ? क्या वेदना उभय-कृत है ?
गौतम ! वेदना आत्म-कृत है, वेदना पर - कृत नहीं है, वेदना उभय-कृत नहीं है। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता ।
६३. भंते! क्या जीव आत्म-कृत वेदना का वेदन करते हैं? पर-कृत वेदना का वेदन करते हैं ? उभय-कृत वेदना का वेदन करते हैं ?
गौतम ! जीव आत्म-कृत वेदना का वेदन करते हैं, पर कृत वेदना का वेदन नहीं करते, उभय-कृत वेदना का वेदन नहीं करते। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता । ६४. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है ।
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