________________
भगवती सूत्र
श. १७ : उ. १ : सू. १०-१८
मूल निष्पन्न हुआ, स्कंध निष्पन्न हुआ यावत् बीज निष्पन्न हुआ, वे जीव भी कायिकी यावत् चार क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। जिन जीवों के शरीर से कंद निष्पन्न हुआ, वे जीव कायिकी यावत् पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। जो जीव स्वभाव से नीचे गिरते हुए कंद का आलंबन बनते हैं, वे जीव भी कायिकी यावत् पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं।
इसी प्रकार कंद की भांति यावत् बीज की वक्तव्यता। ११. भंते! शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! शरीर पांच प्रज्ञप्त हैं औदारिक यावत् कार्मण। १२. भंते! इन्द्रियां कितनी प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! इन्द्रियां पांच प्रज्ञप्त हैं, जैसे-श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय । १३. भंते! योग कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! योग तीन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-मन-योग, वचन-योग, काय- योग। १४. भंते! औदारिक-शरीर को निष्पन्न करता हुआ जीव कितनी क्रिया से स्पृष्ट होता है?
गौतम! स्यात् तीन क्रिया से, स्यात् चार क्रिया से, स्यात् पांच क्रिया से। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता, इसी प्रकार यावत् मनुष्य की वक्तव्यता। १५. भंते! औदारिक शरीर को निष्पन्न करते हुए जीव कितनी क्रियाओं से स्पष्ट होते हैं? गौतम! तीन क्रियाओं से भी, चार क्रियाओं से भी, पांच क्रियाओं से भी। इसी प्रकार पथ्वीकायिक जीवों की वक्तव्यता. इसी प्रकार यावत मनष्यों की वक्तव्यता। इसी प्रकार वैक्रिय-शरीर के भी दो दण्डक वक्तव्य है, इतना विशेष है-जिसके वैक्रिय शरीर है। इसी प्रकार यावत् कर्म-शरीर की वक्तव्यता। इसी प्रकार श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय की वक्तव्यता। इसी प्रकार मन-योग, वचन-योग और काय-योग की वक्तव्यता। जिन जीवों के जो है, वह वक्तव्य है।
ये एकत्व और बहुत्व की दृष्टि से छब्बीस दंडक होते हैं। भाव-पद १६. भंते! भाव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! भाव छह प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-औदयिक, औपशमिक, क्षायिक,
क्षायोपशमिक, पारिणामिक, सांनिपातिक । १७. भंते! वह औदयिक-भाव क्या है?
औदयिक-भाव दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-उदय और उदय-निष्पन्न। इस प्रकार इस अभिलाप के अनुसार जैसे अणुओगद्दाराई में छह नाम (अणुओगद्दाराई, २७३-२९७)
वैसे ही निरवशेष वक्तव्य है यावत् यह है सांनिपातिक भाव। १८. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
६१५