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भगवती सूत्र
श. १५ : सू. १६५-१७१
भंते! सुनक्षत्र देव उस देवलोक से आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनंतर कहां जाएगा ? कहां उपपन्न होगा ?
गौतम ! महाविदेह वास में सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों का अंत करेगा ।
गोशाल का भवभ्रमण - पद
१६६. देवानुप्रिय के अंतेवासी कुशिष्य का नाम था मंखलिपुत्र गोशाल । भंते! वह मंखलिपुत्र गोशाल कालमास में मृत्यु को प्राप्त कर कहां गया है ? कहां उपपन्न हुआ है ?
गौतम ! मेरा अंतेवासी कुशिष्य जिसका नाम था मंखलिपुत्र गोशाल, वह श्रमण घातक यावत् छद्मस्थ-अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त कर ऊर्ध्व चंद्र, सूर्य यावत् अच्युत कल्प में देवरूप में उपपन्न हुआ। वहां कुछ देवों की स्थिति बाईस सागरोपम प्रज्ञप्त है । गोशाल देव की स्थिति भी बाईस सागरोपम प्रज्ञप्त है।
१६७. गोशाल देव उस देवलोक से आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनंतर च्यवन कर कहां जाएगा ? कहां उपपन्न होगा ?
गौतम ! इस जंबूद्वीप द्वीप में भारत वर्ष में विंध्यगिरि के मूल में पुण्ड्र जनपद के शतद्वार नगर के राजा सन्मति की भार्या भद्रा की कुक्षि से पुत्र के रूप में उपपन्न होगा । बहुप्रतिपूर्ण नौ मास और साढे सात रात दिन के व्यतिक्रान्त होने पर यावत् सुरूप पुत्र के रूप में पैदा होगा ।
१६८. जिस रजनी में वह पुत्र उत्पन्न होगा, उस रजनी में शतद्वार नगर के भीतर और बाहर भार- प्रमाण और कुंभ - प्रमाण फूलों और रत्नों की वर्षा होगी।
१६९. उस बालक के माता-पिता ग्यारह दिवस के बीत जाने पर, अशुचि जातकर्म से निवृत्त होने पर बारहवें दिवस के आने पर इस प्रकार का गुणयुक्त गुणनिष्पन्न नामकरण करेंगे, क्योंकि इस बालक के उत्पन्न होने पर शतद्वार नगर के भीतर और बाहर, भार- प्रमाण और कुंभ - प्रमाण फूलों और रत्नों की वृष्टि हुई, इसलिए हमें इस बालक का नामकरण करना चाहिए महापद्म- महापद्म । उस बालक के माता-पिता उसका नामकरण करेगें- 'महापद्म' । १७०. बालक महापद्म को आठ वर्ष से कुछ अधिक आयु वाला जानकर माता-पिता शोभन तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त में उसे महान् राज्याभिषेक से अभिषिक्त करेंगे। वह वहां राजा होगा- महान हिमालय, महान् मलय मेरु और महेन्द्र की भांति वर्णक यावत् विहरण करेगा ।
१७१. किसी दिन महापद्म राजा को महर्द्धिक यावत् महान् ऐश्वर्यशाली दो देव जैसे - पुण्यभद्र और माणिभद्र, सैन्य - कर्म की शिक्षा देंगे ।
तब उस शत-द्वार नगर में अनेक राजा, ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह आदि एक दूसरे को बुलाएंगे, बुलाकर इस प्रकार कहेंगे- देवानुप्रियो ! महापद्म राजा को दो महर्द्धिक यावत् महान ऐश्वर्यशाली दो देव जैसे - पुण्यभद्र और माणिभद्र, सैन्य-कर्म की शिक्षा दे रहे हैं, इसलिए देवानुप्रियो ! हमारे राजा महापद्म का दूसरा
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