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श. १४ : उ. १० : सू. १५४,१५५
भगवती सूत्र १५४. भंते! जैसे केवली 'अनंत-प्रदेशी स्कंध को यह अनंत-प्रदेशी स्कंध है' ऐसा जानतादेखता है वैसे सिद्ध भी 'अनंत-प्रदेशी स्कंध को यह अनंत-प्रदेशी स्कंध है'-ऐसा जानतादेखता है?
हां, जानता-देखता है। १५५. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
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