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भगवती सूत्र
श. ११ : उ. १० : सू. ९८-१०३
उत्पन्न ज्ञान - दर्शन का धारक, अर्हत्, जिन, केवली जीवों को भी जानता देखता है, अजीवों को भी जानता - देखता है, उसके पश्चात् वह सिद्ध, प्रशांत, मुक्त, परिनिर्वृत और सब दुःखों का अन्त करता है।
अलोक-संस्थान - पद
९९. भंते! अलोक किस संस्थान वाला प्रज्ञप्त है ?
गौतम! शुषिरगोलक-संस्थान वाला प्रज्ञप्त है।
१००. भंते! अधोलोक - क्षेत्रलोक क्या १. जीव हैं २. जीव के देश हैं ३. जीव के प्रदेश हैं ४ . अजीव हैं ५. अजीव के देश हैं ६. अजीव के प्रदेश हैं ?
गौतम! जीव भी हैं, जीव के देश भी हैं, जीव के प्रदेश भी हैं। अजीव भी हैं, अजीव के देश भी हैं, अजीव के प्रदेश भी हैं।
जो जीव हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय और अनिन्द्रिय हैं ।
जो जीव के देश हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय-देश यावत् अनिन्द्रिय के देश हैं।
जो जीव- प्रदेश हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय-प्रदेश, द्वीन्द्रिय- प्रदेश यावत् अनिन्द्रिय- प्रदेश हैं ।
जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- रूपि - अजीव, अरूपि - अजीव ।
जो रूपि - अजीव हैं वे चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- स्कंध, स्कन्ध- देश, स्कन्ध- प्रदेश, परमाणु - पुद्गल ।
जो अरूपि - अजीव हैं, वे सात प्रकार के प्रज्ञप्त हैं जैसे - १. धर्मास्तिकाय नहीं है, धर्मास्तिकाय का देश है २. धर्मास्तिकाय का प्रदेश है ३. अधर्मास्तिकाय नहीं है, अधर्मास्तिकाय का देश है ४. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है ५. आकाशास्तिकाय नहीं है, आकाशास्तिकाय का देश ६. आकाशास्तिकाय का प्रदेश है । ७. अध्वा समय है 1 १०१. भंते! तिर्यक्-लोक क्षेत्र- लोक क्या जीव हैं ? जीव- देश हैं ? जीव- प्रदेश हैं ?
पूर्ववत् वक्तव्यता, इतना विशेष है-अरूपि अजीव के छह प्रकार हैं, अध्वा - समय वक्तव्य नहीं है।
१०२. भंते! लोक क्या जीव है ? जीव-देश हैं ? जीव- प्रदेश हैं ?
द्वितीय शतक के अस्तिकाय - उद्देशक (भ. २/१३९) में लोकाकाश की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है- अरूपि - अजीव सात प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- १. धर्मास्तिकाय है, धर्मास्तिकाय का देश नहीं है २. धर्मास्तिकाय का प्रदेश है ३. अधर्मास्तिकाय है, अधर्मास्तिकाय का देश नहीं है ४. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है ५. आकाशास्तिकाय नहीं है, आकाशास्तिकाय का देश है । ६. आकाशास्तिकाय का प्रदेश है ७ अध्वा समय है । शेष पूर्ववत् ।
१०३. भंते! अलोक क्या जीव हैं ? जीव-देश हैं? जीव- प्रदेश हैं ?
इस प्रकार जैसे अस्तिकाय उद्देशक की वक्तव्यता वसे ही निरवशेष वक्तव्य है यावत् अनन्त भाग से न्यून परिपूर्ण आकाश है।
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