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श. ११ : उ. १ : सू. ७-१७
भगवती सूत्र गौतम ! १. बंधक भी है २. अबंधक भी है ३. बंधक भी हैं ४. अबंधक भी हैं ५. अथवा बंधक है और अबंधक है ६. अथवा बंधक है और अबंधक हैं ७. अथवा बंधक हैं और
अबंधक है ८. अथवा बंधक हैं और अबंधक हैं-आयुष्य-कर्म के ये आठ भंग हैं। ८. भंते! वे जीव ज्ञानावरणीय-कर्म के वेदक हैं? अवेदक हैं? गौतम! वे अवेदक नहीं हैं, वेदक है अथवा वेदक हैं। इस प्रकार यावत् आन्तरायिक की
वक्तव्यता। ९. भंते! वे जीव सातावेदक हैं? असातावेदक हैं !
गौतम! सातावेदक है, अथवा असातावेदक है-आठ भंग वक्तव्य हैं। १०. भंते! वे जीव ज्ञानावरणीय-कर्म के उदय वाले हैं? अनुदय वाले हैं? गौतम! वे अनुदय वाले नहीं हैं, उदय वाला है अथवा उदय वाले हैं। इस प्रकार यावत्
आंतरायिक की वक्तव्यता। ११. भंते! वे जीव ज्ञानावरणीय-कर्म के उदीरक-उदीरणा करने वाले हैं? अनुदीरक हैं? गौतम! अनुदीरक नहीं हैं, उदीरक है अथवा उदीरक हैं। इस प्रकार यावत् आंतरायिक की
वक्तव्यता, इतना विशेष है-वेदनीय और आयुष्य के आठ विकल्प वक्तव्य हैं। १२. भंते! वे जीव कृष्ण-लेश्या वाले हैं? नील-लेश्या वाले हैं? कापोत-लेश्या वाले हैं? तैजस-लेश्या वाले हैं? गौतम! १. कृष्ण-लेश्या वाला है अथवा नील-लेश्या वाला है अथवा कापोत-लेश्या वाला है अथवा तैजस-लेश्या वाला है, २. कृष्ण-लेश्या वाले हैं अथवा नील-लेश्या वाले हैं अथवा कापोत-लेश्या वाले हैं अथवा तैजस- लेश्या वाले हैं ३. अथवा कृष्ण-लेश्या वाला
और नील-लेश्या वाला है। इस प्रकार ये द्वि-संयोग, त्रि-संयोग और चतुष्क-संयोग से अस्सी भंग होते हैं। १३. भंते! वे जीव सम्यग्-दृष्टि हैं? मिथ्या-दृष्टि हैं? सम्यक्-मिथ्या-दृष्टि हैं?
गौतम! सम्यग्-दृष्टि नहीं हैं, सम्यक्-मिथ्या-दृष्टि नहीं हैं, मिथ्या-दृष्टि है अथवा मिथ्यादृष्टि हैं। १४. भंते! वे जीव ज्ञानी हैं। अज्ञानी हैं?
गौतम! ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी है अथवा अज्ञानी हैं। १५. भंते ! वे जीव मनो-योग वाले हैं? वचन-योग वाले हैं? काय-योग वाले हैं? गौतम! मनो-योग वाले नहीं हैं, वचन-योग वाले नहीं हैं, काय-योग वाला है अथवा
काययोग वाले हैं। १६. भंते! वे जीव साकार-उपयोग-सहित हैं? अनाकार-उपयोग-सहित हैं?
गौतम! साकार-उपयोग-सहित है, अनाकार-उपयोग-सहित है-इस प्रकार आठ भंग होते हैं। १७ भंते! उन जीवों के शरीर कितने वर्ण कितने गंध, कितने रस और कितने स्पर्श वाले प्रज्ञप्त
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