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ग्यारहवां शतक
पहला उद्देशक संग्रहणी गाथा १. उत्पल २. शालु ३. पलाश ४. कुंभी ५. नाड़ीक ६. पद्म ७. कर्णिका ८. नलिन ९. शिव १०. लोक ये दस तथा काल ग्यारहवां और आलभिका बारहवां उद्देशक है। उत्पल-जीवों का उपपात-आदि-पद १. उस काल और उस समय में राजगृह नगर यावत् पर्युपासना करते हुए गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते! एकपत्रक उत्पल एक जीव वाला है? अनेक जीव वाला है? गौतम! एक जीव वाला है, अनेक जीव वाला नहीं है। प्रथम पत्र के पश्चात् जो अन्य जीवपत्र उत्पन्न होते हैं, वे एक जीव वाले नहीं हैं, अनेक जीव वाले हैं। २. भंते! वे जीव कहां से उपपन्न होते हैं क्या नैरयिक से उपपन्न होते हैं? तिर्यग्योनिक से उपपन्न होते हैं? मनुष्य से उपपन्न होते हैं? देव से उपपन्न होते हैं? गौतम! वे जीव नैरयिक से उपपन्न नहीं होते, तिर्यग्योनिक से उपपन्न होते हैं, मनुष्य से उपपन्न होते हैं, देव से भी उपपन्न होते हैं। इस प्रकार वनस्पतिकायिक का उपपात अवक्रान्ति पद (पण्णवणा ६/८६) की भांति वक्तव्य है यावत् ईशान तक। ३. भंते! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं?
गौतम! जघन्यतः एक, दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय अथवा असंख्येय उपपन्न होते हैं। ४. भंते! वे जीव प्रति समय अपहृत करने पर कितने काल में अपहृत होते हैं? गौतम! वे असंख्येय जीव प्रति समय अपहृत करने पर असंख्येय अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल में अपहृत होते हैं। (यह असत् कल्पना है) उनका अपहार किया नहीं जाता। ५. भंते! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी है?
गौतम! जघन्यतः अंगुल-का-असंख्यातवां-भाग, उत्कृष्टतः कुछ-अधिक-हजार-योजन । ६. भंते! वे जीव ज्ञानावरणीय-कर्म के बंधक हैं? अबंधक हैं?
गौतम! अबंधक नहीं हैं, बंधक है (एकवचन) अथवा बंधक हैं (बहुवचन)। ७. इस प्रकार यावत् आंतरायिक-कर्म की वक्तव्यता, इतना विशेष है-आयुष्य-कर्म की पृच्छा ।
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