SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 466
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र श. १० : उ. ४ : सू. ५३-६० ५३. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - वैरोचनराज वैरोचनेन्द्र बलि के त्रायस्त्रिंशक- देव त्रायस्त्रिंशक - देव हैं ? गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप द्वीप में भारतवर्ष में बेभेल नाम का सन्निवेश था - वर्णक | उस बेभेल सन्निवेश में त्रायस्त्रिंशक - तैतीस परस्पर सहाय्य करने वाले गृहपति श्रमणोपासक रहते थे- जैसे चमर की वक्तव्यता यावत् त्रायस्त्रिंशक - देव के रूप में उपपन्न हुए। ५४. भंते! जिस समय से वे बेभेलक त्रायस्त्रिंशक - तैतीस परस्पर सहाय्य करने वाले गृहपति श्रमणोपासक वैरोचनराज, वैरोचनेन्द्र बलि के त्रायस्त्रिंशक - देव के रूप में उपपन्न हुए। शेष पूर्ववत् वक्तव्य है यावत् नित्य है, अव्युच्छित्ति नय की दृष्टि से कुछ च्यवन करते हैं, कुछ उपपन्न हो जाते हैं। ५५. भंते! नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण के त्रायस्त्रिंशक - देव त्रायस्त्रिंशक - देव हैं ? हां, हैं । ५६. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण के त्रायस्त्रिंशक- देव त्रयस्त्रिंशक - देव हैं ? गौतम ! नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण के त्रायस्त्रिंशक - देवों का शाश्वत नामधेय प्रज्ञप्त है - वह कभी नहीं था यावत् कुछ च्यवन करते हैं, कुछ उपपन्न हो जाते हैं। इसी प्रकार भूतानन्द की वक्तव्यता । इसी प्रकार यावत् महाघोष की वक्तव्यता । ५७. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र के त्रायस्त्रिंशक - देव त्रायस्त्रिंशक - देव है ? हां, हैं । ५८. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- देवराज देवेन्द्र शक्र के त्रायस्त्रिंशक - देव त्रयस्त्रिंशक - देव हैं ? गौतम ! उस काल और उस समय में जम्बूद्वीप द्वीप भारतवर्ष में पालक नाम का सन्निवेश था - वर्णक । उस पालक सन्निवेश में तैतीस परस्पर सहाय्य करने वाले गृहपति श्रमणोपासक रहते । चमर की भांति वक्तव्यता यावत् अपने आपको भावित करते हुए रह रहे थे । ५९. वे तैतीस परस्पर सहाय्य करने वाले गृहपति श्रमणोपासक पहले और पश्चात् उग्र, उग्रविहारी, संविग्न, संविग्नविहारी थे । वे बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन कर मासिकी संलेखना से शरीर को कृश बना, अनशन के द्वारा साठभक्त (भोजन के समय) का छेदन कर, आलोचना प्रतिक्रमण कर, समाधि को प्राप्त कर, कालमास में काल (मृत्यु) प्राप्त कर देवराज देवेन्द्र शक्र के त्रायस्त्रिंशक - देव के रूप में उपपन्न हुए। भंते! जिस समय से वे पालक तैतीस परस्पर सहाय्य करने वाले गृहपति श्रमणोपासक देवराज देवेन्द्र शक्र के त्रायस्त्रिंशक-देव के रूप में उपपन्न हुए, शेष चमर की भांति वक्तव्य है यावत् कुछ च्यवन करते हैं, कुछ उपपन्न हो जाते हैं । ६०. भंते! देवराज देवेन्द्र ईशान के त्रायस्त्रिंशक - देव त्रायस्त्रिंशक - देव हैं ? ३९६
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy