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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. ६,७ : सू. २६५-२७३ गौतम ! तीन क्रिया वाले भी, चार क्रिया वाले भी, पांच क्रिया वाले भी और अक्रिय भी हैं । २६६. भन्ते ! नैरयिक औदारिक-शरीरों से कितनी क्रिया वाले हैं ?
गौतम ! तीन क्रिया वाले भी, चार क्रिया वाले भी और पांच क्रिया वाले भी हैं, यावत् वैमानिक, इतना विशेष है - मनुष्य जीव की भांति वक्तव्य हैं।
२६७. भन्ते ! जीव वैक्रिय शरीर से कितनी क्रिया वाला है ?
गौतम! स्यात् तीन क्रिया वाला, स्यात् चार क्रिया वाला, स्यात् अक्रिय ।
२६८. भन्ते ! नैरयिक वैक्रिय शरीर से कितनी क्रिया वाला है ?
गौतम ! स्यात् तीन क्रिया वाला, स्यात् चार क्रिया वाला यावत् वैमानिक, इतना विशेष है - मनुष्य जीव की भांति वक्तव्य है । जैसे औदारिक शरीर से चार दण्डक कहे गए हैं वैसे वैक्रिय - शरीर से भी चार दण्डक वक्तव्य हैं, इतना विशेष है - पांचवी क्रिया का निर्देश नहीं है, शेष सब पूर्ववत् । जैसे वैक्रिय शरीर की वक्तव्यता है वैसे ही आहारक- शरीर, तैजसशरीर और कर्म - शरीर भी वक्तव्य हैं। प्रत्येक शरीर के चार-चार दण्डक वक्तव्य हैं यावत्२६९. भन्ते ! वैमानिक कर्म शरीरों से कितनी क्रिया वाले हैं ?
गौतम ! तीन क्रियावाले भी हैं, चार क्रिया वाले भी हैं।
२७०. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
सातवां उद्देशक
अन्ययूथिक-संवाद-पद अदत्त की अपेक्षा
२७१. उस काल और उस समय में राजगृह नगर था - वर्णन, गुणशीलक नाम का चैत्य था - वर्णन, यावत् पृथ्वीशिलापट्टक । उस गुणशीलक चैत्य के न अति दूर और न अति निकट अनेक अन्ययूथिक रहते थे। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर आदिकर यावत् वहां समवसृत हुए। परिषद् आई, धर्मदेशना सुन वह लौट गई।
२७२. उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के अनेक अन्तेवासी स्थविर भगवान् जाति-संपन्न, कुल सम्पन्न, बल-संपन्न, रूप - संपन्न, विनय - सम्पन्न, ज्ञान - संपन्न, दर्शन- संपन्न, चारित्र - संपन्न, लज्जा - संपन्न, लाघव-संपन्न, ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी, यशस्वी, क्रोधजयी, मानजयी, मायाजयी, लोभजयी, निद्राजयी, जितेन्द्रिय, परीषहजयी, जीने की आशंसा और मृत्यु के भय से विप्रमुक्त थे । वे श्रमण भगवान महावीर के न अति दूर और न अति निकट उर्ध्वजानु अधः सिर ( उकडू आसन की मुद्रा में) और ध्यानकोष्ठ में लीन होकर संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहार करते हैं ।
२७३. वे अन्ययूथिक जहां स्थविर भगवान थे वहां आए, आ कर इस प्रकार बोले - आर्यो ! तुम तीन योग और तीन करण से असंयत, अविरत, अतीत के पाप कर्म का प्रतिहनन न करने वाले, भविष्य के पाप कर्म का प्रत्याख्यान न करने वाले, कायिकी आदि क्रिया युक्त,
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