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श. ८ : उ. ६ : सू. २५०,२५१
भगवती सूत्र वक्तव्यता कथनीय है यावत् दस संस्तारकों का उपनिमंत्रण देता है यावत् उनका परिष्ठापन कर दे। आलोचनाभिमुख का आराधक-पद २५१. निग्रंथ ने भिक्षा के लिए गृहपति के कुल में प्रवेश कर किसी अकृत्य स्थान का प्रतिसेवन
कर लिया, उसके मन में ऐसा संकल्प हुआ-मैं यहीं इस अकृत्य स्थान की आलोचना करूं, प्रतिक्रमण करूं, निंदा करूं, गर्दा करूं, विवर्तन करूं, विशोधन करूं, पुनः न करने के लिए अभ्युत्थान करूं, यथायोग्य प्रायश्चित्त रूप तपःकर्म स्वीकार करूं, तत्पश्चात् स्थविरों के पास जाकर आलोचना करूंगा यावत् तपःकर्म स्वीकार करूंगा। १. उसने आलोचना के संकल्प के साथ प्रस्थान किया, अभी स्थविरों के पास पहुंचा नहीं, उससे पहले ही स्थविर अमुख (बोलने में असमर्थ) हो गए। भंते! इस अवस्था में क्या वह आराधक है अथवा विराधक? गौतम! वह आराधक है, विराधक नहीं। २. उसने आलोचना के संकल्प के साथ प्रस्थान किया, अभी स्थविरों के पास पहुंचा नहीं, उससे पहले ही स्वयं अमुख (बोलने में असमर्थ) हो गया। भंते ! इस अवस्था में क्या वह आराधक है अथवा विराधक? गौतम! वह आराधक है, विराधक नहीं। ३. उसने आलोचना के संकल्प के साथ प्रस्थान किया, अभी स्थविरों के पास पहुंचा नहीं उससे पहले ही स्थविर काल कर गए। भंते! इस अवस्था में क्या वह आराधक है अथवा विराधक? गौतम! वह आराधक है, विराधक नहीं। ४. उसने आलोचना के संकल्प के साथ प्रस्थान किया, अभी स्थविरों के पास पहुंचा नहीं, उससे पहले ही स्वयं काल कर गया। भंते! इस अवस्था में क्या वह आराधक है अथवा विराधक? गौतम! वह आराधक है, विराधक नहीं। ५. उसने आलोचना के संकल्प के साथ प्रस्थान किया, वह स्थविरों के पास पहुंच गया, उस समय स्थविर अमुख हो गए। भंते! इस अवस्था में क्या वह आराधक है अथवा विराधक? गौतम! वह आराधक है, विराधक नहीं। ६. उसने आलोचना के संकल्प के साथ प्रस्थान किया, वह स्थविरों के पास पहुंच गया, उस समय स्वयं अमुख हो गया। भंते! इस अवस्था में क्या वह आराधक है अथवा विराधक? गौतम! वह आराधक है, विराधक नहीं। ७. उसने आलोचना के संकल्प के साथ प्रस्थान किया, वह स्थविरों के पास पहुंच गया, उस समय स्थविर काल कर गए। भंते! इस अवस्था में क्या वह आराधक है अथवा विराधक? गौतम! वह आराधक है, विराधक नहीं।
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