SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र श. ८ : उ. २ : सू. १०२-१०८ श्रुत- अज्ञान - जो यह अज्ञानी, मिथ्या दृष्टि, स्वच्छन्द - बुद्धि और मति द्वारा विरचित है जैसे - भारत, रामायण | जैसे नंदी (सू. ६७) में यावत् अंग, उपांग- सहित चार वेद । वह श्रुतअज्ञान है। १०३. वह विभंग -ज्ञान क्या है ? विभंग - ज्ञान अनेक प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- ग्राम - संस्थित (गांव के आकार वाला), नगर- संस्थित यावत् सन्निवेश -संस्थित, द्वीप - संस्थित, समुद्र - संस्थित, वर्ष- संस्थित ( भरत - क्षेत्र आदि के आकार वाला), वर्षधर - संस्थित (हिमवत आदि वर्षधर पर्वत के आकार वाला), पर्वत-संस्थित, वृक्ष-संस्थित, स्तूप संस्थित, हय संस्थित (अश्व के आकार वाला), गज- संस्थित, नर-संस्थित, किन्नर -संस्थित, किंपुरुष - संस्थित, महोरग - संस्थित, गंधर्व - संस्थित, वृषभ - संस्थित, पशु - संस्थित, मृगाकार - संस्थित, विहग-संस्थित (पक्षी के आकार वाला), वानर - संस्थित-नाना संस्थानों के आकार वाला प्रज्ञप्त है । जीवों का ज्ञानि - अज्ञानित्व - पद १०४. भन्ते ! जीव क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ? गौतम ! जीव ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं उनमें कुछ दो ज्ञान वाले, कुछ तीन ज्ञान वाले, कुछ चार ज्ञान वाले और कुछ एक ज्ञान वाले हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुत ज्ञान वाले हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिक - ज्ञान, और श्रुत ज्ञान और अवधि ज्ञान वाले हैं अथवा आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुत-ज्ञान मनः पर्यव - ज्ञान वाले हैं। जो चार ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुत-ज्ञान, अवधि- ज्ञान और मनः पर्यव - ज्ञान वाले हैं। जो एक ज्ञान वाले हैं वे नियमतः केवल- ज्ञानी हैं । जो अज्ञानी हैं उनमें कुछ दो अज्ञान वाले, कुछ तीन अज्ञान वाले हैं। जो दो अज्ञान वाले हैं वे मति - अज्ञान और श्रुत- अज्ञान वाले हैं। जो तीन अज्ञान वाले हैं वे मति- अज्ञान, श्रुत- अज्ञान और विभंग - ज्ञान वाले हैं। १०५. भन्ते ! नैरयिक क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे नियमतः तीन ज्ञान वाले हैं, जैसे - आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुत-ज्ञान और अवधि ज्ञान वाले हैं। जो अज्ञानी हैं उनमें कुछ दो अज्ञान वाले, कुछ तीन अज्ञान वाले हैं । इस प्रकार तीन अज्ञान की भजना है। १०६. भन्ते ! असुरकुमार क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ? जैसे नैरयिकों की वक्तव्यता वैसे ही यहां वक्तव्य है-तीन ज्ञान नियमतः होते हैं, तीन अज्ञान की भजना है। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता । १०७. भन्ते ! पृथ्वीकायिक क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ? गौतम ! ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं। जो अज्ञानी हैं वे नियमतः दो अज्ञान वाले हैं-मति - अज्ञान और श्रुत- अज्ञान वाले । इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक की वक्तव्यता । १०८. द्वीन्द्रिय की पृच्छा । गौतम ! ज्ञानी भी होते हैं, अज्ञानी भी होते हैं। जो ज्ञानी होते हैं वे नियमतः दो ज्ञान वाले - २७७
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy