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(XXXI)
आभूषण चुरा लिए तथा उसके शव को भग्न-कूप में डाल दिया, स्वयं जंगल में छिप गया।
___ इधर वह दास-पुत्र पन्थक बालक को खोजने लगा। न मिलने पर घर लौटा तथा धन सार्थवाह को सारी बात बताई। धन ने नगर-आरक्षकों की सहायता ली। नगर-आरक्षकों ने पूरी छानबीन कर भग्न-कूप से मृत बालक के शव को ढूंढ निकाला। जंगल में छिपे हुए विजय तस्कर को माल-सहित पकड़ लिया तथा उसे कारागृह में काष्ठ की बेड़ी में बंद कर दिया तथा माल पुनः धन सार्थवाह को सौंप दिया। धन और भद्रा बड़े दुःखी हुए तथा विजय तस्कर के प्रति उनके मन में बहुत रोष था।
योगानुयोग एक बार धन सार्थवाह किसी व्यावसायिक अपराध में पकड़े जाने पर कारावास भेजा गया तथा वहां उसे उसी काष्ठ की बेड़ी में रखा गया जिसमें विजय तस्कर बंदी था।
धन सार्थवाह के लिए उसके घर से भोजन आता था। भद्रा सेठानी उसके लिए सरस भोजन बनाकर पन्थक दासपुत्र के साथ कारावास भेजती थी। जब धन के लिए भोजन आया तो विजय तस्कर ने, जो भूखा था, धन सार्थवाह से भोजन में संभाग की मांग की। धन ने क्रुद्ध होकर कहा कि तुमने मेरे इकलौते पुत्र की हत्या की है, मैं तुम्हें कैसे भोजन का संभागी बना सकता हूं? बचा हुआ भोजन भी कुत्तों-कौओं को दिलवा दूंगा, पर तुझे नहीं दूंगा।
भोजन करने के बाद धन सार्थवाह को यथासमय हाजत हुई, तब एक ही बेड़ी में बंदी होने के कारण उसने विजय तस्कर को कारावास में देह-निवृत्ति के लिए बने एकान्त स्थान में साथ चलने को कहा। उसने साथ जाने से इन्कार कर दिया। धन अकेला जाने में असमर्थ था, क्योंकि बेड़ी में दोनों एक साथ बंदी थे। काफी समय तक अनुनयविनय करने पर विजय ने साथ जाना इस शर्त पर स्वीकार किया कि जब घर से भोजन
आएगा, तब धन सार्थवाह उसे भोजन में संभागी बनाएगा। धन सार्थवाह ने इसे मंजूर कर लिया। दूसरे दिन जब पन्थक भोजन लेकर आया, तो धन ने विजय को भी आमंत्रित किया। यह बात पन्थक ने घर जा कर बढ़ा चढ़ा कर भद्रा से कही। भद्रा बहुत रुष्ट हुई कि यह क्या? धन ने अपने पुत्र के हत्यारे को भोजन का संभागी बनाया।
कुछ दिन पश्चात् धन सेठ कारावास से मुक्त होने में सफल हो गया। घर वापिस लौटने पर अन्य सभी प्रसन्न हुए और सेठ का स्वागत किया, पर भद्रा रुष्ट होकर बैठ गई। सेठ ने कारण पूछा, तो बताया कि आपने अपने पुत्र के हत्यारे को भोजन क्यों दिया? धन सेठ ने अपनी मजबूरी बताई । तब भद्रा के बात समझ में आई।
भगवान महावीर ने इस दृष्टांत का निगमन करते हुए अपने शिष्यों को बताया कि जैसे धन विजय तस्कर को जो भोजन खिलाता था, वह उसे अपना समझ कर नहीं, वरन् केवल शारीरिक विवशता के कारण खिलाता था, वैसे ही मुनि भी शरीर की विभूषा से उपरत होकर केवल शरीर-संरक्षण के लिए भोजन करे।