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भगवती सूत्र
श. ७: उ. ९ : सू. १८१-१८६
१८१. भन्ते ! उस संग्राम में मार जाने वाले मनुष्य शील, गुण, मर्यादा, प्रत्याख्यान और पौषघोपवास से रहित, रुष्ट और परिकुपित थे। उनका क्रोध उपशान्त नहीं था । वे के समय में मर कर कहां गए? कहां उत्पन्न हुए ?
मृत्यु
गौतम ! वे प्रायः नरक और तिर्यक् योनि में उपपन्न हुए ।
१८२. यह अर्हत् के द्वारा ज्ञात है, यह अर्हत् के द्वारा स्मृत है, यह अर्हत् है—रथमुसल-संग्राम! भन्ते! रथमुसल-संग्राम में कौन जीता ? कौन हारा?
द्वारा विज्ञा
गौतम! वज्री (इन्द्र) विदेहपुत्र (कोणिक) और असुरेन्द्र असुरकुमार चमर जीते। नौ मल्ल और नौ लिच्छवी हारे ।
१८३. रथमुसल-संग्राम उपस्थित हो गया है - यह जान कर राजा कोणिक ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया बुला कर कहा- देवानुप्रियो ! शीघ्र ही हस्तिराज भूतानन्द को सज्ज करो, अश्व, गज, रथ और प्रवर योद्धा से युक्त चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध करो, सन्नद्ध कर शीघ्र ही मेरी इस आज्ञा का प्रत्यर्पण करो ।
१८४. कौटुम्बिक पुरुष कोणिक राजा के द्वारा इस प्रकार का निर्देश प्राप्त कर हृष्ट-तुष्ट और आनन्दित चित्त वाले हुए यावत् अञ्जलि को मस्तक पर टिका कर बोले- स्वामिन् । जैसा आपका निर्देश है, वैसा ही होगा, यह कह कर विनयपूर्वक वचन को स्वीकार किया, स्वीकार कर शीघ्र ही कुशल आचार्य के उपदेश से उत्पन्न मति, कल्पना और विकल्पों तथा सुनिपुण व्यक्तियों द्वारा निर्मित उज्ज्वल नेपथ्य से युक्त, सुसज्ज यावत् भीम, सांग्रामिक, अयोध्य- जिसके सामने कोई लड़ने में समर्थ न हो - हस्तिराज भूतानन्द को सज्ज किया; अश्व, गज, रथ और प्रवर योद्धा से युक्त चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध किया, सन्नद्ध कर जहां राजा कूणिक है वहां आए, आ कर दोनों हथेलियों से निष्पन्न सम्पुट वाली दसनखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमा कर, मस्तक पर टिका कर राजा कूणिक को उस आज्ञा का प्रत्यर्पण किया ।
१८५. राजा कूणिक जहां मज्जन घर है, वहां आया, आ कर मज्जन- घर में अनुप्रवेश किया, अनुप्रवेश कर उसने स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक (तिलक आदि), मंगल ( दधि, अक्षत आदि) और प्रायश्चित्त किया, सब अलंकारों से विभूषित हुआ, लोह - कवच को धारण किया, कलई पर चमड़े की पट्टी बांधी, गले का सुरक्षाकवच पहना, विमलवर चिह्नपट्ट बांधे, आयुध और प्रहरण लिए । उसने कटसरैया के फूलों से बनी मालाओं से युक्त छत्र धारण किया, जिसके दोनों ओर दो-दो चमर डुलाए जा रहे थे । उसको देखते ही जनसमूह मंगल जय - निनाद करने लगा यावत्, जहां हस्तिराज भूतानन्द है, वहां आया। आ कर हस्तिराज भूतानन्द पर आरूढ़ हो गया ।
१८६. राजा कूणिक का वक्ष हार आच्छादन से सुशोभित हो रहा था यावत् वह डुलाए जा रहे श्वेतवर चमरों से युक्त; अश्व, गज, रथ और प्रवर योद्धा से युक्त चतुरंगिणी सेना से परिवृत, महान् सुभटों के सुविस्तृत वृन्द से परिक्षिप्त हो कर जहां रथमुसल - संग्राम की भूमि थी, वहां आया। आ कर रथमुसल संग्राम में उतर गया। उसके पुरोभाग में देवेन्द्र देवराज
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