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भगवती सूत्र
श. ७ : उ. ९ : सू. १७५-१८० आनन्दित चित्त वाले हुए यावत अञ्जलि को भाल पर टिका कर बोले-स्वामिन् ! जैसा आपका निर्देश है वैसा ही होगा, यह कह कर विनयपूर्वक वचन को स्वीकार किया, स्वीकार कर शीघ्र ही कुशल आचार्य के उपदेश से उत्पन्न मति, कल्पना और विकल्पों तथा सुनिपुण व्यक्तियों द्वारा निर्मित उज्ज्वल, नेपथ्य से युक्त, सुसज्ज यावत् भीम, सांग्रामिक, अयोध्य -जिसके सामने कोई लड़ने में समर्थ न हो-हस्तिराज उदाई को सज्ज किया, अश्व, गज, रथ और प्रवर योद्धा से युक्त चतुरङ्गिणी सेना को सन्नद्ध किया, सन्नद्ध कर जहां राजा कूणिक है वहां आए, आ कर दोनों हथेलियों से निष्पन्न सम्पुट वाली दसनखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमा कर मस्तक पर टिका कर राजा कूणिक को उस आज्ञा का प्रत्यर्पण किया। १७६. राजा कूणिक जहां मज्जन-घर है, वहां आया, आ कर मज्जन-घर में अनुप्रवेश किया,
अनुप्रवेश कर उसने स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक (तिलक आदि), मंगल (दधि, अक्षत आदि) और प्रायश्चित्त किया, सब अलंकारों से विभूषित हुआ, लोहकवच को धारण किया, कलई पर चमड़े की पट्टी बांधी, गले का सुरक्षाकवच पहना, विमलवर चिह्नपट्ट बांधे, आयुध और प्रहरण लिए। उसने कटसरैया के फूलों से बनी मालाओं से युक्त छत्र धारण किया, जिसके दोनों ओर दो-दो चामर डुलाए जा रहे थे। उसको देखते ही जनसमूह मंगल जय-निनाद करने लगा। यावत् जहां हस्तिराज उदाई था, वहां आया। आकर हस्तिराज उदाई पर आरूढ हो गया। १७७. राजा कूणिक का वक्ष-हार के आच्छादन से सुशोभित हो रहा था यावत् वह डुलाए जा रहे श्वेतवर चामरों से युक्त, अश्व, गज, रथ और प्रवर योद्धा से युक्त चतुरंगिणी सेना से परिवृत, महान् सुभटों के सुविस्तृत वृन्द से घिरा हुआ जहां महाशिला-कंटक-संग्राम की भूमि थी, वहां आया, आकर महाशिला-कंटक-संग्राम में उतर गया। उसके पुरोभाग में देवेन्द्र देवराज शक्र एक महान् वज्रतुल्य अभेद्य कवच का निर्माण कर उपस्थित है। इस प्रकार दो इन्द्र संग्राम कर रहे हैं, जैसे देवेन्द्र और मनुष्येन्द्र। राजा कूणिक एकहस्तिका से भी जीतने में समर्थ है। राजा कूणिक एकहस्तिका से भी दूसरों को पराजित करने में समर्थ है। १७८. राजा कूणिक ने महाशिला-कंटक-संग्राम लड़ते हुए नौ मल्ल और नौ लिच्छवी काशी-कौशल के अट्ठारह गणराजों को हत-प्रहत कर दिया, मथ डाला, प्रवर योद्धाओं को मार डाला. चिह्न-ध्वजा-पताका को गिरा दिया. उनके प्राण संकट में पड़ गए, उन्हें पीछे की ओर ढकेल दिया। १७९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कि वह महाशिला-कंटक- संग्राम है?
गौतम! महाशिला-कंटक-संग्राम चल रहा था। वहां विद्यमान अश्व, हाथी, योद्धा अथवा सारथी पर तृण, काष्ठ, पत्र अथवा शर्करा (कंकर) का प्रहार किया जाता, तब वे सब अनुभव करते कि उन पर महाशिला से प्रहार किया जा रहा है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है महाशिला-कंटक-संग्राम है। १८०. भन्ते! महाशिला-कंटक-संग्राम में कितने लाख मनुष्य मारे गए? गौतम! चौरासी लाख मनुष्य मारे गए।
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