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श. ७ : उ. ७ : सू. १२६-१३९
भगवती सूत्र अपेक्षा से कहा जा रहा है-संवृत अनगार जो आयुक्त दशा में चलता है यावत् साम्परायिकी क्रिया नहीं होती। १२७. भन्ते! काम रूपी हैं अथवा अरूपी?
गौतम! काम रूपी हैं, अरूपी नहीं हैं। १२८. भन्ते! काम सचित्त हैं अथवा अचित्त ?
गौतम! काम सचित्त भी हैं और अचित्त भी हैं। १२९. भन्ते! काम जीव हैं अथवा अजीव ?
गौतम! काम जीव भी हैं और अजीव भी हैं। १३०. भन्ते! काम जीवों के होते हैं अथवा अजीवों के होते हैं?
गौतम! काम जीवों के होते हैं, अजीवों के नहीं होते। १३१. भन्ते! काम कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! काम दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-शब्द और रूप। १३२. भन्ते! भोग रूपी हैं अथवा अरूपी हैं?
गौतम! भोग रूपी हैं, अरूपी नहीं हैं। १३३. भन्ते! भोग सचित्त भी हैं और अचित्त भी हैं?
गौतम! भोग सचित्त भी हैं और अचित्त भी हैं। १३४. भन्ते! भोग जीव हैं अथवा अजीव?
गौतम! भोग जीव भी हैं और अजीव भी हैं। १३५. भन्ते! भोग जीवों के होते हैं अथवा अजीव के होते हैं?
गौतम! भोग जीवों के होते हैं, अजीवों के नहीं होते। १३६. भन्ते! भोग कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! भोग तीन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-गन्ध, रस और स्पर्श । १३७. भन्ते! काम-भोग कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! काम-भोग पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श । १३८. भन्ते! क्या जीव कामी हैं अथवा भोगी?
गौतम! जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं। १३९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं?
गौतम! श्रोत्र-इन्द्रिय और चक्षु-इन्द्रिय की अपेक्षा जीव कामी हैं। घ्राण-इन्द्रिय, जिह्वा-इन्द्रिय और स्पर्शन-इन्द्रिय की अपेक्षा जीव भोगी हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जीव कामी भी हैं, और भोगी भी हैं।
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