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भगवती सूत्र
श. ७ : उ. ७ : सू. १२०-१२६ जितना होगा। उनमें पहिये की धुरी के प्रवेश-छिद्र जितना जल बहेगा। वह जल अनेक मछलियों और कछुओं से आकीर्ण होगा। उसमें जल की मात्रा कम होगी। वे मनुष्य सूर्य के उदयकाल और अस्तकाल के समय अपने-अपने बिलों से निकलेंगे, निकल कर मछलियों
और कछुओं को स्थल पर लाएंगे, ला कर उन्हें सर्दी के दाह और गर्मी के ताप में पकाएंगे। इक्कीस हजार वर्ष तक इस प्रकार जीविका का निर्वाह करेंगे। १२१. भन्ते! वे शील-रहित, गुण-रहित, गर्यादा-रहित, पौषघोपवास और प्रत्याख्यान-रहित तथा प्रायः मांस-मछली खाने वाले, क्षुद्र-भोजी तथा शवों को खाने वाले मनुष्य कालमास में काल कर कहां जायेंगे? कहां उत्पन्न होंगे?
गौतम! वे प्रायः नरक और तिर्यञ्च-योनि में उत्पन्न होंगे। १२२. भन्ते! वे शील-रहित सिंह, व्याघ्र, भेड़िया, चीता (चितिदार तेंदुआ) रीछ, तेंदुआ (लस्कडबग्घा या hynea), अष्टापद (भालू की प्रजाति का जानवर या woinbat) यावत् कालमास में काल कर कहां उत्पन्न होंगे?
गौतग! वे प्रायः नरक और तिर्यञ्च-योनि में उत्पन्न होंगे। १२३. भन्ते! वे शील-रहित ढंक (द्रोण-काक या बड़े कौए), कंक (सफेद कौआ), बिलक (सुनहरा नील पक्षी या नीलक), जलवायस (पन्नडूबी या बानकी), मोर या कुक्कुट (मुर्गा) यावत् कहां उपपन्न होंगें?
गौतम! वे प्रायः नरक और तिर्यञ्च-योनि में उत्पन्न होंगे। १२४. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
सातवां उद्देशक
संवृत का क्रिया-पद १२५. भन्ते! जो संवृत अनगार आयुक्त दशा में (दत्तचित्त होकर) चलता है, खड़ा होता है, बैठता है, लेटता है, वस्त्र, पात्र, कम्बल ओर पाद-प्रोञ्छन लेता अथवा रखता है, भन्ते! क्या उसके ऐर्यापथिकी क्रिया होती है अथवा साम्परायिकी क्रिया होती है? गौतम! संवृत अनगार आयुक्त दशा में चलता है यावत् उसके ऐपिथिकी मिया होती है, साम्परायिकी क्रिया नहीं होती। १२६. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-रांवृत अनगार आयुक्त दशा में चलता है यावत् साम्परायिकी क्रिया नहीं होती? .
गौतम! जिसके क्रोध, मान, माया, और लोभ व्यवच्छिन्न हो जाते हैं, उसके ऐपिथिकी क्रिया होती है, जिसके क्रोध, मान, भाया और लोभ व्यवच्छिन्न नहीं होते, उसके साम्परायिकी क्रिया होती है। यथासूत्र-सूत्र के अनुसार चलने वाले के ऐर्यापथिकी क्रिया होती है, उत्सूत्र-सूत्र के विपरीत चलने वाले के साम्परायिकी क्रिया होती है। वह (जिसके क्रोध, गान, माया, और लोभ व्यवच्छिन्न होते हैं) यथासूत्र ही चलता है। गौतम! यह इस
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