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भगवती सूत्र
श. ६ : उ. ५ : सू. ९२-१०२ 'यह रहा, यह रहा' - इस प्रकार कह कर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप में तीन बार चुटकी बजाने जितने समय में इक्कीस बार घूम कर शीघ्र ही आ जाता है । वह देव उस उत्कृष्ट, त्वरित यावत् देवगति से परिव्रजन करता हुआ परिव्रजन करता हुआ यावत् एक दिन, दो दिन तीन दिन अथवा उत्कर्षतः पन्द्रह दिन परिव्रजन करे तो किसी कृष्णराजि को अतिक्रमण कर जाता है और किसी कृष्णराजि का अतिक्रमण नहीं कर पाता ।
गौतम! कृष्णराजियां इतनी बड़ी प्रज्ञप्त हैं ।
९३. भन्ते ! कृष्णराजियों में क्या घर हैं ? गृह-आपण (दुकानें ) हैं ?
यह अर्थ संगत नहीं है ।
९४. भन्ते ! कृष्णराजियों में क्या गांव हैं यावत् सन्निवेश हैं ?
यह अर्थ संगत नहीं है ।
९५. भन्ते ! कृष्णराजियों में क्या बड़े मेघ संस्विन्न होते हैं ? संमूर्च्छित होते हैं ? (मेघ का आकार लेते हैं) बरसते हैं ?
हां, ऐसा होता है ।
९६. भन्ते ! क्या वह (संस्वेदन, संमूर्च्छन, वर्षणा) कोई देव करता है ? असुर करता है ? नाग करता है ?
गौतम ! देव करता है, असुर नहीं करता है, नाग नहीं करता है ?
९७. भन्ते ! कृष्णराजियों में क्या बादर (स्थूल) गर्जना का शब्द है ? बादर विद्युत् है ?
हां, है ।
९८. भन्ते ! क्या वह (गर्जन का शब्द और विद्युत) कोई देव करता है ? असुर करता है, नाग करता है ?
गौतम ! देव करता है । असुर नहीं करता, नाग नहीं करता ।
९९. भन्ते ! कृष्णराजियों
- वनस्पतिकाय है ?
में क्या बादर - अप्काय है ? बादर - अग्निकाय है ? बादर
यह अर्थ संगत नहीं है । विग्रह - गति ( अन्तराल - गति) करते हुए जीवों को छोड़कर । १००. भन्ते! कृष्णराजियों में क्या चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं ? यह अर्थ संगत नहीं है ।
१०१. भन्ते ! कृष्णराजियों में क्या चन्द्रमा की आभा है ? सूर्य की आभा है ? यह अर्थ संगत नहीं है ।
१०२. भन्ते ! कृष्णराजियां वर्ण से कैसी प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम! वे वर्ण से काली, कृष्ण अवभास वाली, गम्भीर रोमाञ्च उत्पन्न करने वाली, भयंकर, उत्त्रासक और परमकृष्ण प्रज्ञप्त है । कोई एक देव भी उनके प्रथम दर्शन में क्षुब्ध जाता है। यदि वह उनमें प्रविष्ट हो जाता है तो उसके पश्चात् अतिशीघ्रता और अतित्वरा साथ झटपट उसके बाहर चला जाता है ।
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