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भगवती सूत्र
श. ५ : उ. ४,५ : सू. ११३-११८
११३. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - चतुर्दशपूर्वी यावत् एक दण्ड से हजार दण्ड उत्पन्न कर दिखाने में समर्थ है ?
गौतम! चतुर्दशपूर्वी को उत्कारिका भेद से भिद्यमान अनन्त द्रव्य लब्ध प्राप्त और अभिसमन्वागत होते हैं। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है- चतुर्दशपूर्वी एक घडे से हजार घड़े, एक वस्त्र से हजार वस्त्र, एक चटाई से हजार चटाइयां, एक रथ से हजार रथ, एक छत्र से हजार छत्र और एक दण्ड से हजार दण्ड उत्पन्न कर दिखाने में समर्थ है। ११४. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
पांचवां उद्देशक
मोक्ष-पद
११५. भन्ते ! क्या छद्मस्थ मनुष्य इस अनन्त, शाश्वत अतीत काल में केवल संयम, केवल संवर, केवल ब्रह्मचर्यवास और केवल प्रवचनमाता की आराधना से सिद्ध हुआ ? बुद्ध हुआ ? मुक्त हुआ ? परिनिवृत्त हुआ ? और उसने सब दुःखों का अन्त किया ?
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक में जिस प्रकार आलापक हैं उसी प्रकार यहां ज्ञातव्य हैं यावत् केवली समर्थ है, ऐसा कहा जा सकता है ।
एवंभूत-अनेवंभूत-वेदना-पद
११६. भन्ते ! अन्ययूथिक इस प्रकार आख्यान करते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं - सब प्राण, सब भूत, सब जीव और सब सत्त्व एवंभूत ( जिसमें जिस प्रकार कर्मों का बन्धन होता है उसी प्रकार कर्मों का वेदन करते हैं) वेदना का अनुभव करते हैं ।
११७. भन्ते ! यह वक्तव्य कैसा है ?
गौतम ! वे अन्ययूथिक इस प्रकार आख्यान करते हैं यावत् सब सत्त्व भूत वेदना का अनुभव करते हैं। जो वे इस प्रकार कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। गौतम ! मैं इस प्रकार आख्यान करता हूं यावत् प्ररूपणा करता हूं-कुछ एक प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं, कुछ एक प्राण, भूत, जीव और सत्त्व अनेवंभूत (कर्मों के बन्धन में परिवर्तन लाकर ) वेदना का अनुभव करते हैं ।
११८. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- कुछ एक प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं, कुछ एक प्राण, भूत, जीव और सत्त्व अनेवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम! जो प्राण, भूत जीव और और सत्त्व जैसे कर्म किया वैसे ही वेदना का अनुभव करते हैं, वे प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं ।
जो प्राण, भूत, जीव और सत्त्व जैसे कर्म किया वैसे ही वेदना का वेदन नहीं करते वे अनेवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है- कुछ एक प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं, कुछ एक प्राण, भूत, जीव और सत्त्व अनेवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं।
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