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भगवती सूत्र
श. ५ : उ. ४ : सू. १०९-११२ १०९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है केवली आदान (इन्द्रियों) से न जानता है, न देखता है? गौतम! केवली पूर्व दिशा में मित को भी जानता है, अमित को भी जानता है। इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊर्ध्व और अधो दिशा में वह मित को भी जानता है, अमित को भी जानता है। केवली सब को जानता है, सब को देखता है। केवली सब ओर से जानता है, सब ओर से देखता है। केवली सब काल को जानता है, सब काल को देखता है। केवली सब भावों को जानता है, सब भावों को देखता है। केवली का ज्ञान अनन्त है, केवली का दर्शन अनन्त है। केवली का ज्ञान निरावरण है, केवली का दर्शन निरावरण है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है केवली आदान (इन्द्रियों) से नहीं जानता, नहीं देखता। केवलियों की योग-चंचलता का पद ११०. भन्ते! केवली इस समय (निर्दिष्ट वर्तमान समय) में जिन आकाश-प्रदेशों में हाथ, पांव, बाहू अथवा सक्थि (साथल) को अवगाहित कर ठहरता है, वह भविष्य में भी उन्हीं आकाश-प्रदशों में हाथ, पांव, बाहू या सक्थि को अवगाहित कर ठहरने में समर्थ हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। १११. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है केवली इस समय जिन आकाश-प्रदेशों में हाथ, पांव, बाहू अथवा सक्थि को अवगाहित कर ठहरता है, वह भविष्य में भी उन्हीं आकाश-प्रदेशों में हाथ, पांव बाहू अथवा सक्थि को अवगाहित कर ठहरने में समर्थ नहीं है? गौतम! केवली का वीर्य योग (कायिक प्रवृत्ति) तथा द्रव्य(कायवर्गणा-प्रयोग)-सहित होता है। इसलिए उसके उपकरण (हाथ पैर आदि अवयव) चल होते हैं। चल उपकरण के कारण केवली उस समय में जिन आकाश-प्रदेशों में हाथ, पांव, बाहू अथवा सक्थि को अवगाहित कर ठहरता है, वह भविष्य में भी उन्हीं आकाश-प्रदेशों में हाथ, पांव, बाहू अथवा सक्थि को अवगाहित कर ठहरने में समर्थ नहीं है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है केवली इस समय में जिन आकाश-प्रदेशों में हाथ, पांव, बाहू अथवा सक्थि को अवगाहित कर ठहरता है, वह भविष्य में उन्हीं आकाश-प्रदेशों में हाथ, पांव, बाहू अथवा सक्थि को अवगाहित कर ठहरने में समर्थ नहीं है। चतुर्दशपूर्वियों का सामर्थ्य-पद ११२. भन्ते! चतुर्दशपूर्वी एक घड़े से हजार घड़े, एक वस्त्र से हजार वस्त्र, एक चटाई से हजार चटाइयां, एक रथ से हजार रथ, एक छत्र से हजार छत्र और एक दण्ड से हजार दण्ड उत्पन्न कर दिखाने में समर्थ हैं? हां, समर्थ है।
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