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भगवती सूत्र
श. ५ : उ. ४ : सू. ८८-९५
आनन्दित, नन्दित, प्रीति पूर्ण मन वाल, परम सौमनस्य युक्त और हर्ष से उल्लसित हृदय वाले होकर शीघ्रता से उठते हैं, उठ कर शीघ्रता से उनके सम्मुख आते हैं, जहां भगवान गौतम है, वहां उनके सम्मुख आते हैं, यावत् नमस्कार कर इस प्रकार बोले- भन्ते ! महाशुक्र- कल्प के महासामान विमान से हम दो देव जो महर्द्धिक यावत् महाप्रभावी हैं, श्रमण भगवान् महावीर के निकट आए हैं। हम श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार कर मानसिक स्तर पर ये इस प्रकार के प्रश्न पूछते हैं-भन्ते ! आपके कितने सौ अन्तेवासी सिद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ? हमारे द्वारा मानसिक स्तर पर पूछे गए प्रश्न का श्रमण भगवान महावीर हमें मानसिक स्तर पर यह इस प्रकार का उत्तर देते हैं - देवानुप्रियो ! मेरे सात सौ अन्तेवासी सिद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे। हमारे द्वारा मानसिक स्तर पर पूछे गए प्रश्न का श्रमण भगवान महावीर द्वारा मानसिक स्तर पर ही यह इस प्रकार का उत्तर दिए जाने पर हम श्रमण भगवान महावीर को वन्दन नमस्कार करते हैं यावत् पर्युपासना करते हैं, ऐसा कह कर वे भगवान गौतम को वन्दन - नमस्कार करते हैं। वन्दन - नमस्कार कर वे जिस दिशा से आए उसी दिशा में चले गए।
देवों की नोसंयत वक्तव्यता का पद
८९. भन्ते ! इस सम्बोधन से सम्बोधित कर भगवान गौतम श्रमण भगवान महावीर को वन्दन नमस्कार करते हैं यावत् इस प्रकार बोले- भन्ते ! देव संयत है, क्या ऐसा कहा जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। यह देवों के लिए अभ्याख्यान है - यथार्थ से परे है ।
९०. भन्ते ! देव असंयत है, क्या ऐसा कहा जा सकता है ?
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। यह देवों के लिए निष्ठुर वचन है ।
९१. भन्ते ! देव संयतासंयत है, क्या ऐसा कहा जा सकता है ?
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। देवों के लिए असद्भूत वचन है - यथार्थ नहीं है ।
९२. भन्ते ! फिर उन देवों को क्या कहा जा सकता है ?
गौतम ! देव नोसंयत हैं, ऐसा कहा जा सकता है ।
देवभाषा-पद
९३. भन्ते! देव किस भाषा में बोलते हैं ? बोली जाती हुई कौन-सी भाषा विशिष्ट होती है ? अर्धमागधी भाषा में बोलते हैं और वह अर्धमागधी भाषा बोली जाती हुई विशिष्ट
गौतम !
होती है।
छद्मस्थ और केवली का ज्ञान भेद-पद
९४. भन्ते ! केवली अन्तकर और अन्तिमशरीरी को जानता - देखता है ?
हां, जानता देखता है ।
९५. भन्ते ! जिस प्रकार केवली अंतकर और अन्तिम शरीरी को जानता देखता है, क्या उसी प्रकार छद्मस्थ भी अंतकर और अन्तिमशरीर को जानता देखता है ?
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है । वह सुनकर अथवा किसी प्रमाण से जानता देखता है।
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