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भगवती सूत्र
श. ५ : उ. ४ : सू. ७०-७६ गौतम! जीव चारित्र-मोहनीय-कर्म के उदय से हंसते हैं और उत्सुक होते हैं। वह केवली के नहीं होता। गौतम! इस अपेक्षा से कहा जा रहा है जिस प्रकार छद्मस्थ मनुष्य हंसता और उत्सुक होता है, उस प्रकार केवली न हंसता है और न उत्सुक होता है। ७१. भन्ते। जीव हंसता हुआ और उत्सुक होता हुआ कितनी कर्म-प्रकृतियों का बंध करता है?
गौतम! वह सात प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बन्धन करता है अथवा आठ प्रकार की कर्मप्रकृतियों का बन्धन करता है। इस प्रकार यावत् वैमानिक-देवों तक यही वक्तव्यता है। पृथक्त्व सूत्रों (बहुवचनान्त सूत्रों) में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर सर्वत्र तीन विकल्प होते हैं सब जीव सात प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बन्धन करते हैं। शेष सब जीव सात प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बन्धन करते हैं तथा एक जीव आठ प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बन्धन करता है। कुछ जीव सात प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बन्धन करते हैं और कुछ जीव आठ प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बन्धन करते हैं। बहुवचनान्त जीव और एकेन्द्रिय-जीवों का केवल एक ही भंग होता है। वे सब सात प्रकार की और आठ प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बन्धन करते हैं। छद्मस्थ और केवली की निद्रा का पद ७२. भन्ते! क्या छद्मस्थ मनुष्य नींद लेता है? प्रचला लेता है?
हां, वह नींद लेता है, प्रचला लेता है। ७३. भन्ते! जिस प्रकार छद्मस्थ मनुष्य नींद लेता है, प्रचला लेता है, उस प्रकार क्या केवली
भी नींद और प्रचला लेता है? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। ७४. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है जिस प्रकार छद्मस्थ मनुष्य नींद लेता है, प्रचला लेता है, उस प्रकार केवली नींद नहीं लेता और प्रचला नहीं लेता? गौतम! जीव दर्शनावरणीय-कर्म के उदय से नींद लेते हैं, प्रचला लेते हैं। वह (दर्शनावरणीयकर्म) केवली के नहीं होता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है जिस प्रकार छद्मस्थ मनुष्य नींद लेता है, प्रचला लेता है, उस प्रकार केवली नींद नहीं लेता, प्रचला नहीं लेता। ७५. भन्ते! जीव नींद लेता हुआ, प्रचला लेता हुआ कितनी कर्म-प्रकृतियों का बन्धन करता
गौतम! वह सात प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बन्धन करता है अथवा आठ प्रकार की कर्म प्रकृतियों का बन्धन करता है। इस प्रकार यावत् वैमानिक-देवों तक ज्ञातव्य है। पृथक्त्व सूत्रों (बहुवचनान्त सूत्रों) में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर सर्वत्र तीन विकल्प (सू.७१ की तरह) होते हैं। गर्भ-संहरण-पद ७६. भन्ते! शक्र का दूत हरि-नैगमैषी देव स्त्री के शरीर में से गर्भ का संहरण करता हुआ क्या गर्भ से गर्भ में संहरण करता है? गर्भ से योनि में संहरण करता है? योनि से गर्भ में संहरण
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