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श. ५ : उ. ३,४ : सू. ५९-६४
भगवती सूत्र सायुष्यसंक्रमण-पद ५९. भन्ते! जो जीव नैरयिकों में उपपन्न होने वाला है, भन्ते! वह वहां आयुष्य-सहित संक्रमण करता है? आयुष्य-रहित संक्रमण करता है?
गौतम! वह आयुष्य-सहित संक्रमण करता है, आयुष्य-रहित संक्रमण नहीं करता। ६०. भन्ते! उसने आयुष्य किस जन्म में अर्जित किया और किस जन्म में समाचीर्ण किया?
गौतम! पूर्व जन्म में अर्जित किया और पूर्व जन्म में समाचीर्ण किया। ६१. इस प्रकार यावत् वैमानिक-देवों के दण्डक तक ज्ञातव्य है। ६२. भन्ते! जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होने वाला है, वह उसी का आयुष्य अर्जित करता है, जैसे-नैरयिक का आयुष्य? तिर्यग्योनिक का आयुष्य? मनुष्य का आयुष्य अथवा देव का आयुष्य? हां, गौतम ! जो जीव जिस योनि से उत्पन्न होने वाला है, वह उसी का आयुष्य अर्जित करता है, जैसे-तैरयिक का आयुष्य, तिर्यग्योनिक का आयुष्य, मनुष्य का आयुष्य अथवा देव का आयुष्य । नैरयिक का आयुष्य अर्जित करने वाला जीव सात प्रकार का आयुष्य अर्जित करता है, जैसे–रत्नप्रभा-पृथ्वी-नैरयिक का आयुष्य, शर्कराप्रभा-पृथ्वी-नैरयिक का आयुष्य, बालुकाप्रभा-पृथ्वी-नैरयिक का आयुष्य, पंकप्रभा-पृथ्वी-नैरयिक का आयुष्य, धूमप्रभा-पृथ्वी-नैरयिक का आयुष्य, तमःप्रभा-पृथ्वी-नैरयिक का आयुष्य अथवा अधःसप्तमी-पृथ्वी-नैरयिक का आयुष्य। तिर्यग्योनिक आयुष्य अर्जित करने वाला जीव पांच प्रकार का आयुष्य अर्जित करता है, जैसे-एकेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-आयुष्य द्वीन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-आयुष्य, त्रीन्द्रिय-तिर्यग्योनिकआयुष्य, चतुरिन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-आयुष्य अथवा पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-आयुष्य।। मनुष्य का आयुष्य अर्जित करने वाला जीव दो प्रकार का आयुष्य अर्जित करता है, जैसे-संमूर्च्छिम-मनुष्य का आयुष्य अथवा गर्भावक्रान्तिक-मनुष्य का आयुष्य।
देव का आयुष्य अर्जित करने वाला जीव चार प्रकार का आयुष्य अर्जित करता है, जैसेभवनवासी-देव का आयुष्य, वानमन्तर-देव का आयुष्य, ज्योतिष्क-देव का आयुष्य अथवा
वैमानिक-देव का आयुष्य। ६३. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
चौथा उद्देशक
छद्मस्थ और केवली द्वारा शब्द श्रवण का पद ६४. भन्ते! क्या छद्मस्थ मनुष्य आकुट्यमान (वाद्ययंत्रों को पीटे जाने पर उत्पन्न) शब्दों को सुनता है, जैसे-शंख-शब्द, सींग-शब्द, छोटे शंख का शब्द, काहला का शब्द, बड़ी काहला का शब्द, वीणा-शब्द, पणव-शब्द, पटह-शब्द, भंभा-शब्द, होरंभ (बड़े ढोल) का शब्द,
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